खाली घर
(मनु की याद में)
इस खाली खाली से घर में….
खामोशी के इन दीवारों में….
कोई रहता है मेरी यादों में….
कोई रहता है मेरी यादों में…
सूना मन है, तबियत कम है….
लगता है जीवन अब मद्धम है….
बातें उसकी आज भी गूंजती है….
वही चेहरा सामने रहता है….
इस खाली खाली से घर में….
दिल के इस सूनेपन मन में….
एक आस जो कभी पनपी थी….
हिम्मत जो कुंलाचे भरता था….
पर अब बोझिल सी पड़ती सांसो में….
नम सी रहती आँखों में….
नींद भी आती है तो बिना सपनों के….
घर भी पूरा है तो बिना अपनों के….
इस खाली खाली से घर में….
उनके होने के अहसासों में….
लगता है वो आज भी आएगा….
मेरे सपनों को वह यहाँ लायेगा….
माना किन्तु अब कुछ भी नहीं….
संग मेरे तू अब पल भर भी नहीं….
पर तेरी बाट मैं जोहूँगा….
यहाँ वहां तुझको मैं खोजूंगा….
इस खाली खाली से घर में….
दर्पण देखूं तो तू दिखता है….
मन मेरा तेरे साथ आने को करता है ….
तू आ जा किसी न किसी रूप में….
मेरा अस्तित्व न अब मुझसे संभलता है….
इस खाली खाली से घर में….
खामोशी के इन दीवारों में….
कोई रहता है मेरी यादों में….
कोई रहता है मेरी यादों में…
प्रकाश “मणिभ”