बेवजह मुझे तुम सताने लगी होl
क्या प्यार फिर से जताने लगी हो ?
अदायें तो लगती है ऐसी ही कुछ,
जो जुल्फें फिर लहराने लगी होl
हरदम हरपल याद आती हो तुम,
अब ऐसे दिल पर छाने लगी होl
जिन्दगी में खाये हैं धोखे बहुत,
अब मजाक तुम भी उड़ाने लगी होl
करते नहीं थे हम जो भी कभी,
अब वो ही मुझसे करवाने लगी होl
जिन्दगी ने करा है ये हाल मेरा,
कि मानो मुझको गिराने लगी होl
‘ललित’ तो है आज भी वैसा ही,
पर तुम तो बदलाव लाने लगी होll
ललित सिंह, रायबरेली