कोरोना वायरस से मुकाबले के लिए राज्य के अस्पताल मुश्किल से तैयार हो ही पाए थे कि अब ब्रिटेन में मिले वायरस के नए स्ट्रेन ने हेल्थ सिस्टम के लिए नई चुनौती खड़ी कर दी है। नए स्ट्रेन से निपटने के लिए अस्पतालों को नए सिरे से तैयार किया जा रहा है। राज्य में कोरोना का पहला मरीज 15 मार्च को सामने आया था। तब से लेकर अभी तक अस्पतालों में 90 हजार के करीब मरीजों का इलाज हो चुका है।
पहले जहां सिर्फ दून अस्पताल, एम्स ऋषिकेश और हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज में ही इलाज की सुविधा थी वह अब धीरे-धीरे बढ़ाकर जिला अस्पतालों तक पहुंच गई है। शुरू में अस्पतालों को आईसोलेशन वार्ड से लेकर आईसीयू, वेंटीलेटर, पीपीई किट से लेकर मास्क तक के लिए अस्पतालों को काफी मशक्कत करनी पड़ी। नौ महीनों में सभी दिक्कतों को दूर करते हुए अस्पतालों में मूलभूत सुविधाओं को जुटाई गई, लेकिन नए वायरस ने अब फिर से अस्पतालों में इन सभी तैयारियों को शुरू करने की नौबत ला दी है।
अलग वार्ड बनाने के निर्देश
ब्रिटेन में नए स्ट्रेन मिलने के बाद केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को नए स्ट्रेन के हिसाब से तैयारी करने को कहा है। इसके बाद प्रभारी सचिव डॉ. पंकज पांडेय की ओर से जिलों को नए स्ट्रेन के मरीजों का मैनेजमेंट करने के लिए दिशा निर्देश जारी किए गए हैं। इसके तहत मरीजों के लिए अलग से वार्ड बनाए जाएंगे। संदिग्ध मरीज भी अलग वार्ड में रहेंगे जबकि क्वारंटाइन सेंटर भी अलग से बनाए जाएंगे। अस्पतालों में यदि अलग अलग आइसोलेशन वार्ड बनाने पड़े तो एक बार फिर संसाधनों की कमी आड़े आएगी। इसके साथ ही बड़े अस्पतालों में भी कम मरीजों का इलाज हो पाएगा।
उत्तराखंड में सिर्फ 710 वेंटीलेटर
मार्च की तुलना में दिसम्बर 2020 तक राज्य सरकार ने स्वास्थ्य सुविधाओं में खासा इजाफा किया है। लेकिन अभी भी स्वास्थ्य सिस्टम महामारी को देखते हुए काफी कम है। राज्य में वर्तमान में कुल 710 वेंटीलेटर हैं। यदि कोरोना के दोनों वायरस के मरीज सामने आए तो यह संख्या काफी कम पड़ जाएगी। हालांकि मार्च 2020 में राज्य में सिर्फ 116 ही वेंटीलेटर उपलब्ध थे। आईसीयू की संख्या राज्य में इस समय 836 है। जबकि मार्च में यह संख्या महज 216 थी। राज्य में इस समय सैंपल टेस्टिंग के लिए 13 लैब काम कर रही हैं। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार राज्य में इस समय 31 हजार से अधिक आईसोलेशेन बेड हैं।
डॉक्टर, कर्मचारियों पर भी बढ़ेगा दबाव
नए वायरस ने यदि राज्य में पांव पसारे तो न केवल अस्पतालों में संसाधन बढ़ाने की जरूरत पड़ेगी बल्कि डॉक्टर, कर्मचारियों पर भी दबाव बढ़ेगा। कोरोनाकाल में सरकार ने सात सौ के करीब डॉक्टरों की नियुक्ति की। अभी भी छह सौ से अधिक पद खाली हैं। नर्सों के दो हजार के करीब पद खाली हैं। टैक्नीशियन, सफाई कर्मियों की भी कमी है। नए वायरस के मरीज मिलते हैं तो इससे यह कमी और खलेगी और स्टाफ की जरूरत भी बढ़ जाएगी।