मध्यप्रदेश के शहडोल के जिला अस्पताल में मंगलवार को दो और मासूमों की मौत के साथ बीते पांच दिन में 8 बच्चों की जान जा चुकी है। इनमें चार बच्चे ऐसे थे जो दो से पांच दिन पहले अस्पताल में भर्ती हुए थे। अस्पताल और जिला प्रशासन मामले की लीपापोती में लगा है।
देखने वाली बात यह है कि यह है कि इस अस्पताल में बच्चों के लिए 20 बेड ही हैं, जबकि यहां 32 बच्चों को रखा गया। इसके बावजूद अस्पताल जांच करने पहुंची सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज जबलपुर के सीनियर डॉक्टरों डॉ. पवन घनघोरिया (पीडियाट्रिशनय विभाग के एचओडी) और सहायक प्राध्यापक डॉ. अखिलेंद्र सिंह परिहार की दो सदस्यीय टीम ने डॉक्टरों को क्लीन चिट दे दी। जांच दल ने कहा डॉक्टर सही उपचार दे रहे हैं। स्टॉफ-नर्स की कमी जरूर है, जगह भी कम है, जिसे बढ़ाना होगा।
सीएमएचओ डॉ. राजेश पांडे का कहना है कि हर साल इस तरह का सीजनल वेरीएशन (मौसमी परिवर्तन) होता है। इसलिए ऐसी स्थिति बनती है। जैसे- पिछले सप्ताह निमोनिया से पीड़ित बच्चे आए, अब संख्या घटी है। यह तर्क भी तब दिए जा रहे हैं, जब जनवरी 2020 में इसी अस्पताल में छह मासूमों की मौत हो चुकी है। तब भी हल्ला मचा तो तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट मौके पर पहुंचे थे। इस बार भी आठ मासूम लापरवाही की भेंट चढ़ चुके हैं।
सुलेमान-गोयल ने ली जानकारी
वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव मोहम्मद सुलेमान और आयुक्त संजय गोयल ने पूरी जानकारी ली। सुलेमान ने कहा कि मौत के कारणों की जांच के लिए टीम गई है। किन कारणों से मौत हुई, डॉक्टर और स्टॉफ का रवैया कैसा रहा है, देखभाल में कमी तो नहीं रही, इन सभी पहलुओं पर जानकारी मांगी है। इसके बाद आगे निर्णय करेंगे।
जिला स्तर से कहीं अच्छी शहडोल में है: डॉ. घनघोरिया
डॉ. घनघोरिया ने कहा कि जिला स्तर पर जिस तरह की सुविधा व इलाज मिलनी चाहिए, उससे कहीं बेहतर सुविधा शहडोल जिला चिकित्सालय में है। डॉ. घनघोरिया ने इससे पहले सीएमएचओ डॉ. पांडे को बताया कि डॉक्टरों ने सही इलाज दिया। कुछ सुधार की जरूरत है।
बकौल डॉ. पांडे, घनघोरिया ने कहा कि शहडोल के जिला अस्पताल पर आसपास के जिलों का भार है, इसलिए कुछ अपडेशन होना चाहिए। स्पेश के साथ स्टॉफ-नर्स की संख्या बढ़ानी होगी।
अस्पताल का दावा- 8 में से 7 बच्चों को निमोनिया था
जांच दल ने पाया कि आठ में से सात बच्चे भर्ती होते वक्त निमोनिया से पीड़ित थे, जबकि एक नवजात की मौत डिलेवरी के दौरान गंदा पानी पीने से हुई है। बहरहाल, सोमवार देर रात दो और शिशुओं की मौत हो गई है। दोनों की उम्र करीब तीन माह थी।
कलेक्टर का तर्क- इलाज में कमी नहीं
डॉ. घनघोरिया की प्रारंभिक रिपोर्ट मिलने के बाद शहडोल कलेक्टर सतेंद्र सिंह ने कहा कि जिन बच्चों की मौत हुई, वे कुपोषित नहीं थे। एक-एक बच्चे की केस हिस्ट्री शासन को भेजी गई है। 20 बेड की क्षमता वाले अस्पताल में 32 बच्चे भर्ती हो जाएं तो दिक्कत तो होगी। शहडोल अस्पताल पर उमरिया, अनूपपुर और डिंडोरी जिले का भी दबाव होता है। बच्चे रैफर होकर आते हैं।
सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज मौतों का कारण
उमरिया के दो दिन की बच्चे की मौत।
कारण- डिलेवरी के दौरान गंदा पानी पीया।
शहडोल के अरझुला के 4 मार के बच्चे की मौत।
कारण- निमोनिया।
धनपुरी (शहडोल) के दो माह के बच्चे की मौत।
कारण- निमोनिया।
बुढ़री (शहडोल) के तीन माह के बच्चे का निधन। कारण- निमोनिया-बुखार।
27 नवंबर को भर्ती हुई शहडोल की तीन माह की बच्ची की 29 नवंबर को मौत।
25 नवंबर को भर्ती शहडोल के 3 माह के बच्चे की 30 को मौत। कारण- मस्तिस्क बुखार, निमोनिया।
अनूपपुर (ठाड़पाथर) निवासी शिवदास ने छह दिन पहले तीन माह की बच्ची को भर्ती कराया था। सोमवार को उसे जबलपुर रेफर किया गया। एंबुलेंस में बैठते ही सांसें उखड़ने लगी। तुरंत वापस पीआईसीयू में भर्ती कराया गया। देर रात बच्ची ने दम तोड़ दिया।