राजनीति में कभी भी किसी से कोई दुश्मनी या फिर बैर नहीं होता। राजनीति में किस राजनेता का ऊंठ कब और किस करवट बैठ जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसे में यदि चुनावी मौसम हो तो फिर कभी भी कुछ भी हो सकता है, ना जाने कब किस नेता की अपनी पार्टी की बजाए दूसरी पार्टी में आस्था जाग जाए। हरियाणा में चल रहे विधानसभा चुनाव में भी रोजाना ऐसे नजारे देखने को मिल रहे हैं।
यहां नेता ही नहीं, बल्कि चुनावी मैदान में उतरे नेता भी अपने दलों से बगावत कर चुनावी प्रचार के अंतिम दौर में भी अपना पाला बदल रहे हैं। चुनाव प्रचार खत्म होने के चंद घंटे पहले अशोक तंवर ने बीजेपी को अलविदा कहते हुए राहुल गांधी के मंच पर महेंद्रगढ़ में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की मौजूदगी में कांग्रेस का दामन थाम लिया। यह सारा घटनाक्रम पिछले कुछ दिनों से चल रहा था। इस पूरे घटनाक्रम में कांग्रेस के दिग्गज नेता अजय माकन की अहम भूमिका रही। अशोक तंवर रिश्ते में अजय माकन के बहनोई लगते हैं।
अतीत में अशोक तंवर पिछले पांच वर्ष में पहले तृणमूल कांग्रेस में गए, उसके बाद वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए, लेकिन उन्होंने किसी भी राजनीतिक मंच से कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ कभी भी कोई शब्द नहीं कहा। इनके मोबाइल में राहुल गांधी के मोबाइल नंबर के आगे GOD यानि भगवान लिखा हुआ हमेशा रहा है। राजनीतिक परिस्थितियों के अनुसार कुमारी सैलजा के मंच पर कांग्रेस में ना जाकर राहुल गांधी और हुड्डा की मौजूदगी में कांग्रेस में तंवर की भावी रणनीति की ओर संकेत दे रहा है। अशोक तंवर जेएनयू के पूर्व छात्र नेता रहे हैं। राहुल गांधी की टीम में शामिल जेएनयू के अन्य छात्र नेताओं का भी तंवर पर पिछले काफी दिनों से पार्टी में वापसी करने को लेकर दवाब था।
अशोक तंवर ने चुनाव प्रचार खत्म होने से चंद घंटे पहले जिस प्रकार से कांग्रेस में घर वापसी की, उससे बीजेपी के बड़े नेताओं को भी संभलने का मौका उन्होंने नहीं दिया। अशोक तंवर कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष 6 साल से अधिक रहे हैं और अतीत में नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा और अशोक तंवर में मतभेद, कानूनी लड़ाई किसी से छिपी हुई नहीं है। दलित वोट बैंक हरियाणा में अशोक तंवर के प्रभाव में काफी है।