कोविड की वजह से बच्चों की पढ़ाई रुक सी गई है। अगर वह चल भी रही है तो केवल ऑनलाइन। लेकिन डिजिटल युग में इस सुविधा का लाभ वही बच्चे ले पा रहे हैं, जिनके परिजन अनलिमिटेड इंटरनेट डेटा उपलब्ध करा पा रहे हैं। भला इस स्थिति में स्लम के बच्चे तो पढ़ाई से बिल्कुल दूर ही हो गए हैं। लेकिन उनके लिए एक उम्मीद की किरण दिखने लगी है। दिल्ली के वसंत बिहार के दो स्लम एरिया नेपाली कैंप और भंवरसिंह कैंप में फ्री वाई-फाई की सुविधा उन्हें मिल रही है।
बच्चों के पढ़ाई के सपने को पूरा किया है स्थानीय समाजसेवी अभिषेक जैन ने। एमिटि यूनिवर्सिटी के स्नातक करनेवाले अभिषेक ने बताया कि दोनों ही कैंप में दो जगहों पर इसे इंस्टॉल किया गया है। मोहल्ले में पोस्टर चिपका कर आईडी और पासवर्ड बताया गया है। ताकि गरीब बच्चे निश्चिंत होकर इसका लाभ ले सकें। यही नहीं, इस इलाके में रहनेवाले पढ़े लिखे युवाओं को भी रोजगार दिया है। ये युवक वहां के बच्चों को जाकर पढ़ाते हैं। फिलहाल दो ऐसे महिला शिक्षक 200 से अधिक बच्चों को पढ़ा रही हैं।
कोविड की वजह से बच्चों की पढ़ाई रुक सी गई है। अगर वह चल भी रही है तो केवल ऑनलाइन। लेकिन डिजिटल युग में इस सुविधा का लाभ वही बच्चे ले पा रहे हैं, जिनके परिजन अनलिमिटेड इंटरनेट डेटा उपलब्ध करा पा रहे हैं। भला इस स्थिति में स्लम के बच्चे तो पढ़ाई से बिल्कुल दूर ही हो गए हैं। लेकिन उनके लिए एक उम्मीद की किरण दिखने लगी है। दिल्ली के वसंत बिहार के दो स्लम एरिया नेपाली कैंप और भंवरसिंह कैंप में फ्री वाई-फाई की सुविधा उन्हें मिल रही है।
बच्चों के पढ़ाई के सपने को पूरा किया है स्थानीय समाजसेवी अभिषेक जैन ने। एमिटि यूनिवर्सिटी के स्नातक करनेवाले अभिषेक ने बताया कि दोनों ही कैंप में दो जगहों पर इसे इंस्टॉल किया गया है। मोहल्ले में पोस्टर चिपका कर आईडी और पासवर्ड बताया गया है। ताकि गरीब बच्चे निश्चिंत होकर इसका लाभ ले सकें। यही नहीं, इस इलाके में रहनेवाले पढ़े लिखे युवाओं को भी रोजगार दिया है। ये युवक वहां के बच्चों को जाकर पढ़ाते हैं। फिलहाल दो ऐसे महिला शिक्षक 200 से अधिक बच्चों को पढ़ा रही हैं। https://cdn.jwplayer.com/players/4tLAIJDK-SBGWwnIq.html
भारत में 6-14 आयु वर्ग के लगभग 35 मिलियन बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं। 5-9 आयु वर्ग की लगभग 53% लड़कियां निरक्षर हैं। भारत की साक्षरता दर 74।4% है और उनमें से अधिकांश पुरुष हैं। जहां तक इन दो कैंपों की बात है तो भंवर सिंह कैंप में लगभग 20 हजार और नेपाली कैंप में लगभग छह हजार की आबादी रहती है। दोनों जगहों को मिलाकर 500 से अधिक बच्चे इस सुविधा का लाभ ले रहे हैं।
अभिषेक जैन ने बताया कि, “मुझे पता है कि भारत के बच्चे बहुत प्रतिभाशाली हैं, लेकिन उनमें से कई आर्थिक रूप से कमजोर हैं और शिक्षा का स्मार्ट तरीका नहीं अपना सकते हैं। ऑनलाइन शिक्षा के इस दौर में उचित इंटरनेट के बिना, बच्चे शिक्षा के मूल अधिकार से वंचित हैं। हम पूरी कोशिश कर रहे हैं कि इन छात्रों को एक उचित वाई-फाई सिस्टम प्रदान किया जा सके, ताकि वो पढ़ाई जारी रख सकें।
इन शिविरों की स्थापना से पहले, बच्चे ऑनलाइन कक्षाओं, परियोजनाओं और यहां तक कि परीक्षाओं से गायब थे। उनमें से अधिकांश के पास कक्षाओं में भाग लेने के लिए एक अच्छा इंटरनेट कनेक्शन नहीं था। भावरसिंह कैंप की रहने वाली 12 साल की अंशिका ने बताया कि शिक्षा अब उसके लिए आसान हो गई है। क्योंकि अब वह लगातार क्लास भी अटेंड कर रही है और स्कूल के प्रोजेक्ट भी पूरा कर पा रही है। वहीं निखिल ने बताया कि वह फिलहाल ग्रैजुएशन की पढ़ाई कर रहा है, वह भी इसका लाभ ले पा रहे हैं।