जयपुर । राजस्थान में विधानसभा चुनावों को लेकर हाल ही में वोटिंग हुई है, अभी तक चुनावों का परिणाम भी नहीं आया कि दोनों ही बड़े दल कांग्रेस और बीजेपी अपनी-अपनी सरकार बनाने को लेकर तैयारी में जुट गए है । सभी दल निर्दलीय प्रत्याशियों को साधने की अंदरुनी रूप से पुरजोर कोशिश में जुटे हुए है । बता दें कि 2018 में भी करीब 12 निर्दलीय प्रत्याशियों ने जीत हासिल की थी । उस समय सरकार बनाने के लिए कांग्रेस को एक विधायक की जरूरत थी । इस कारण निर्दलीयों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, ऐसी संभावना जताई जा रही है कि इस बार भी निर्दलीयों की संख्या और भी अधिक रहने वाली है । क्योंकि दोनों ही पार्टियों से बागी उम्मीदवारों की संख्या पिछली बार से ज्यादा है । बताया जा रहा है कि उनमें से बड़ी संख्या में बागी प्रत्याशी जीत भी रहे हैं ।
बीजेपी के 32 तो कांग्रेस के 22 बागी नेता चुनावी मैदान में डटे
ऐसे में सियासी हल्कों में चर्चा बनी हुई है कि वसुंधरा राजे भी अपने विधायकों को साधने की तैयारी में पूरी तरह से जुट गई है । जिसको लेकर पूर्व सीएम राजे निर्दलीयों और बागियों से लगातार अंदर ही अंदर संपर्क कर रही है । दरअसल दोनों ही पार्टियों के बागियों को उनके अपने ही दल से अंदरुनी सपोर्ट मिल रहा है । आपको बता दें कि भाजपा में बागी नेताओं की संख्या 32 है तो कांग्रेस में 22 बागी नेता अंतिम समय तक चुनावी मैदान में डटे थे । ऐसे में बीजेपी में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी कई निर्दलीयों को अपने पक्ष में करने के लिए गेमप्लान बना रही है ।
राजस्थान में विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान साफ तौर पर देखने को मिला था कि वसुंधरा राजे ने अपने पक्ष वाले उम्मीदवारों के लिए तो चुनाव प्रचार किया । लेकिन जहां समर्थक बागी के रूप प्रत्याशी था वहां पर राजे ने कोई चुनावी सभाएं नहीं की । वसुंधरा समर्थकों के रूप में कैलाश मेघवाल, भवानी सिंह राजावत, युनूस खान, चंद्रपाल सिंह जैसे दिग्गज नेता जिन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में ताल ठोक रखी थी ।
आपको बता दें कि कैलाश मेघवाल कई बार मंत्री और सांसद रह चुके हैं । इस बार केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल से हुए विवाद के बाद बीजेपी से उनको निष्कासित कर दिया गया । इसके चलते उनका टिकट भी कट गया था । हालांकि निर्दलीय के रूप में कैलाश मेघवाल के जीत की संभावना भी अधिक जताई जा रही है । साथ ही भवानी सिंह राजावत की बात करें तो राजावत भी कोटा की लाडपुरा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं । लेकिन इस बार भाजपा ने उनका टिकट काट दिया । जिससे नाराज होकर भवानी सिंह राजावत अब लाडनू से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं । वहीं यूनुस खान भी वसुंधरा के सबसे करीबी माने जाते हैं । जो डीडवाना से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ते रहे हैं । लेकिन भाजपा ने इस बार उनको टिकट नहीं दिया । ऐसे में यूनुस खान भी बागियों की लिस्ट की शोभा बढ़ा रहे हैं । वहीं अनीता सिंह नगर भी वसुंधरा की करीबी रही हैं । पार्टी का टिकट नहीं मिलने पर वो भी निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ी हैं । चित्तौड़गढ़ सीट पर भाजपा के मौजूदा विधायक चंद्रपाल सिंह भी टिकट न मिलने पर बागी प्रत्याशी के रूप में ताल ठोक दी ।
बीजेपी के करीब 20 बागी प्रत्याशी वसुंधरा के करीबी
बताया जाता है कि पिछली बार यानी कि 2018 के विधानसभा चुनावों में अशोक गहलोत की चाल कामयाब हुई थी । दरअसल गहलोत ने कांग्रेस के करीब डेढ़ दर्जन बागियों को चुनाव मैदान में उतारा था क्योकि गहलोत उनकी जीत को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त थे । आखिर में कांग्रेस पूर्ण बहुमत में नहीं आई और गहलोत का प्लान कामयाब हो गया और अशोक गहलोत ने बागियों के साथ मिलकर अपनी सरकार बना ली । ऐसा ही कुछ 2023 के चुनावों में होने की संभावना जताई जा रही है । सूत्रों के मुताबिक इस बार वसुंधरा राजे भी कुछ इसी तरह की रणनीति में जुट गई है । वसुंधरा राजे की इस बार यही प्लानिंग है कि बीजेपी को 85 से 90 सीट ही मिले । वसुंधरा राजे के करीब खास 20 लोग बागी की हैसियत से चुनाव मैदान में भाग्य आजमा रहे हैं । अगर ये जीतते हैं तो वसुंधरा को मुख्यमंत्री बनाने के लिए बीजेपी के साथ आएंगे, नहीं तो ये कांग्रेस की सरकार बनवाएंगे ।
गहलोत और वसुंधरा कर सकते हैं एक-दूसरे की मदद !
प्रदेश के सियासी हल्कों में चर्चा बनी हुई है कि अगर किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलता है तो गहलोत और वसुंधरा मिलकर सरकार बना सकते हैं । बता दें कि अशोक गहलोत की ओर से लड़ रहे बागी उम्मीदवार मौका पड़ने पर वसुंधरा के लिए खुलकर सामने आ सकते हैं । इसी तरह वसुंधरा के लोग मौका पड़ने पर अशोक गहलोत की मदद कर सकते हैं ।