नैनीतालः उत्तराखंड के बहुचर्चित उद्यान घोटाले की जांच केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) करेगी। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने इस प्रकरण की जांच सीबीआई को सौंप दी है। युगलपीठ ने जारी अपने महत्वपूर्ण निर्णय में सीबीआई को जांच में तेजी लाने और तीन महीने में प्रारंभिक जांच पूरी करने के निर्देश दिए हैं।
अदालत ने यह भी कहा कि सीबीआई इस मामले को तार्किक निर्णय तक ले जाए और तथ्य मिलने पर अभियोग पंजीकृत कर आगे की जांच करे। युगलपीठ ने आगे कहा कि सीबीआई जैसी प्रतिष्ठित एजेंसी को सौंपे जाने के लिए यह एक सटीक मामला है। अदालत ने प्रदेश सरकार और विशेष अन्वेषण दल (एसआईटी) को जांच में सहयोग करने और इससे जुड़े सभी दस्तावेज सीबीआई को उपलब्ध करवाने के निर्देश भी दिए हैं। खंडपीठ ने अपने निर्णय में यह भी कहा है कि इस मामले का राष्ट्रीय महत्व है। यह मामला अन्य राज्यों से जुड़ा हुआ है। इसलिए सीबीआई इस मामले में दूध का दूध और पानी का पानी करने में सक्षम है। उच्च न्यायालय के निर्णय से अपना दामन बचाने वाली धामी सरकार को जबरदस्त झटका लगा है। इस मामले में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का एक विधायक भी जांच के घेरे में है। अदालत ने सीबीआई जांच का विरोध करने के लिये प्रदेश सरकार की ओर से दिए गए सभी तथ्यों को नकार दिया है।
मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की पीठ ने प्रमुख रूप से हल्द्वानी निवासी दीपक करगेती की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद 11 अक्टूबर को निर्णय सुरक्षित रख लिया था। आज आदेश की प्रति प्राप्त हुई। उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ता की ओर से इसी साल दायर एक जनहित याचिका में तमाम आरोप लगाते हुए पूरे प्रकरण की जांच सीबीआई से करवाने की मांग की गई। अदालत ने इस प्रकरण से जुड़ी सभी याचिकाओं को आज निस्तारित कर दिया। आरोप है कि फलदार पौधों के नाम पर प्रदेश में जबरदस्त घोटाला हुआ है। आरोप है कि जम्मू कश्मीर और हिमाचल प्रदेश से घोटाले के तार जुड़े हैं। एक ही दिन में वर्क आर्डर जारी करना और उसी दिन पेड़ भी मंगाना दिखाया गया है। इस मामले में उद्यान निदेशक हरमिंदर सिंह बवेजा और अनिका ट्रेडर्स की भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं। बताया गया कि जब काश्तकारों और किसानों ने शोर मचाया तब अधिकारियों की नींद खुली। पौधों के वितरण के नाम पर भी फर्जीवाड़ा का आरोप है। प्रदेश सरकार पर भी इस मामले में पर्दा डालने का आरोप है।
आरोप है कि एसआईटी जांच के नाम पर सरकार इस मामले पर पर्दा डालना चाहती थी। जब मामला उच्च न्यायालय पहुंचा तो सरकार ने 121 बवेजा को निलंबित कर दिया। साथ ही मामले को विशेष जांच टीम (एसआईटी) को सौंप दिया।