जलवायु परिवर्तन का असर अब जंगलों की आग पर भी पड़ने लगा है। सितंबर के बाद बारिश न होने से मौसम काफी सूखा हो गया है। इस कारण अक्तूबर से राज्य के जंगल धधक रहे हैं।
इसके चलते पहली बार अक्तूबर से फॉरेस्ट फायर की मॉनिटरिंग शुरू की गई है। पिछले करीब सवा महीने में 75 हेक्टेयर से ज्यादा जंगल जल चुके हैं। जो कि अपने आप में एक रिकार्ड है।
अब तक 50 से ज्यादा आग की घटनाएं पहाड़ी इलाकों में हो चुकी हैं। इनमें अल्मोड़ा, त्यूनी, उत्तरकाशी, चमोली, पौड़ी आदि शामिल हैं। इन घटनाओं में करीब दो लाख से ज्यादा की वन संपदा को नुकसान पहुंचा है। जबकि इसी साल फायर सीजन यानी 15 फरवरी से 15 जून तक 135 घटनाओं में 172 हेक्टेयर जंगल ही जले थे।
बारिश न होना और लोगों की सक्रियता बढ़ना कारण: ज्यादातर इलाकों में सितंबर से बारिश नहीं हुई है। पहाड़ों पर अच्छी धूप खिल रही है।
इस कारण मौसम काफी सूखा हो गया है। पाला भी काफी कम पड़ रहा है। इस कारण जंगलों में नमी नहीं है। इसके अलावा लॉकडाउन के बाद लोगों की सक्रियता अचानक बढ़ने लगी है। घास पाने के लिए भी जंगलों में सूखी पत्तियां जलाई जा रही हैं।
फायर सीजन के बाद भी धधक रहे जंगल
हल्द्वानी। उत्तराखंड में जंगल इस बार फायर सीजन के बाद भी धधक रहे हैं। एक अक्तूबर से अब तक गढ़वाल के जंगलों में 58 घटनाएं तो कुमाऊं के वनों में 11 घटनाएं हुई हैं।
इन हालात में वन विभाग ने जंगलों की आग बुझाने के लिए फायर सीजन की तर्ज पर अग्नि शमन के उपाय लागू कर दिए हैं। उत्तराखंड में इस बार सितंबर-अक्तूबर महीने में लगभग शून्य रही बारिश के चलते जंगलों में नमी खत्म हो गई।
अक्तूबर मध्य में तीखी धूप के चलते जंगलों में पड़ी पत्तियां सूख गईं हैं। वन अफसरों के मुताबिक ठंड का सीजन शुरू होने के चलते लकड़ी-घास के लिए इंसान का जंगल में मूवमेंट बढ़ा है।
केंद्र का फायर अलार्म राज्य का आपदा केंद्र शुरू
केंद्र सरकार की ओर राज्यों को सेटेलाइट के जरिए 15 फरवरी से 15 जून तक फायर अलार्म दिया जाता है। इसमें राज्य में जहां-जहां आग की घटनाएं हुई हैं, उसकी जानकारी राज्य के वन विभाग समेत दूसरे विभागों के अफसरों को भेजी जाती हैं, ताकि आग लगने की स्थिति में तुरंत काबू पाया जा सके। मगर इस बार राज्य सरकार ने केन्द्र से गुजारिश कर एक अक्तूबर से ही फायर अलार्म शुरू करा दिया है।
इस बार अक्तूबर से होगा फायर सीजन
वन विभाग आमतौर पर 15 फरवरी से 15 जून तक फायर सीजन मानता है। फरवरी से पहले वह जंगलों में फायर लाइन काटने के साथ आग से निपटने को फायर वाचर की तैनाती आदि करता है। मगर अक्तूबर में ही आग की तेजी से बढ़ी घटनाओं को देखते हुए वन विभाग ने एक अक्तूबर से ही फायर सीजन मान लिया है।
इस बार बारिश ना होने और पाला कम पड़ने से मौसम काफी सूखा है। जिस कारण हल्की चिंगारी से भी जंगल जल्दी आग पकड़ रहे हैं। लोग लॉकडाउन के बाद अब ज्यादा सक्रिय हो रहे हैं। घास के लिए भी जंगल जलाने की घटनाएं सामने आई हैं। पहली बार अक्तूबर में इतनी घटनाएं होने कारण हमने मॉनिटरिंग शुरू कर दी है। जो कि पिछले सालों तक फरवरी में शुरू होती थी। आग को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं।