बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान अपने प्रचार अभियान में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अक्सर अपनी विकास योजनाओं की चर्चा करते हैं। नीतीश कुमार के अनुसार उन्होंने बीते वर्षों में घर-घर नल जल योजना और प्रदेश में बिजली और सड़कों का जाल बिछा दिया है। आइए जानतें हैं बिजली, सड़क और पानी पर नीतीश ने कितना काम किया है।
2011 की जनगणना के अनुसार हिमाचल प्रदेश के बाद बिहार देश का दूसरा सबसे अधिक ग्रामीण बहुल राज्य है। देशभर की 69 प्रतिशत की तुलना में इसकी आबादी का 89 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों में रहता है। इसका मतलब यह है कि राज्य में बुनियादी नागरिक सुविधा एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। 2015 के बिहार चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सात वादों में बिजली, सड़क और पानी शामिल थे। उन्होंने इसे कैसे किया है?
बिहार में बिजली की स्थिति आंकड़ों में
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के आंकड़ों के मुताबिक, राष्ट्रीय स्तर पर 74% की तुलना में 2004-05 में बिहार के केवल 51% गांवों में इलेक्ट्रिफिकेशन हुआ था। 2009-10 में यह 61% और 2014-15 में बढ़कर 93 प्रतिशत तक हो गया। वहीं सौभाग्य पोर्टल के अनुसार सूबे में एक कनेक्शन की चाह रखने वाले सभी ग्रामीण परिवारों को मार्च 2019 तक विद्युतीकृत कर दिया गया था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के तीसरे कार्यकाल में प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत के डेटा के मुताबिक सबसे अधिक सुधार दिखाता है। नवीनतम अवधि के उपलब्ध डेटा के मुताबिक प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) 2004-05 और 2009-10 के बीच 7.9%, 2009-10 और 2014-15 के बीच 8.9% और 2014-15 और 2016-17 के बीच 30.2% रहा।
हालाँकि, उपलब्ध डेटा के मुताबक बिहार का प्रति व्यक्ति बिजली की खपत 2016-17 में 18 प्रमुख राज्यों की तुलना में सबसे कम था। यह उन 12 प्रमुख राज्यों में से एक था जहां ग्रामीण क्षेत्रों को 24 घंटे बिजली नहीं मिलती थी। संसद में दिए गए विभिन्न उत्तरों के अनुसार, यह सितंबर 2019 और अगस्त 2020 में 6वें स्थान पर था।
नीतीश कुमार के तीसरे कार्यकाल में टिप्पणी मुश्किल
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय से उपलब्ध नवीनतम उपलब्ध डेटा के मुताबिक चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) में 2004-05 और 2009-10 के बीच बिहार में सड़कों की लंबाई 1.2% थी, वहीं 2009-10 और 2014-15 के बीच यह बढ़कर 10% हो गई और 2014-15 और 2016-17 के बीच 0.9% देखी गई है। यह दिखाता है कि बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार के दूसरे कार्यकाल के दौरान सड़क की लंबाई में सबसे अधिक वृद्धि हुई। हालांकि हाल के आंकड़ों की कमी को देखते हुए बिहार के सड़क निर्माण के रिकॉर्ड पर नीतीश कुमार के तीसरे कार्यकाल में टिप्पणी करना मुश्किल है।
सड़कों की लंबाई बढ़ने के बावजूद अपर्याप्त
हालांकि बिहार के बारे में चिंता की बात यह है कि सड़कों की लंबाई बढ़ने के बावजूद यह अपर्याप्त है। यह प्रति मिलियन व्यक्तियों पर 1994.5 किलोमीटर है। 2016-17 में उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश के बाद राज्य में सड़क घनत्व तीसरा सबसे कम था।
राज्य में सड़कों की एक और समस्या उनकी गुणवत्ता है। हालांकि राजमार्ग कोलतार की बनी ठोस सतह वाली होती है, लेकिन 2016-17 तक के आंकड़ों के अनुसार राज्य में अधिकांश ग्रामीण और शहरी सड़कें अनिश्चित हैं। वहीं राष्ट्रीय स्तर की तुलना में राज्य में सतह वाली सड़कों की समग्र हिस्सेदारी में लगातार सुधार नहीं दिखाया है और यह बहुत नीचे बनी हुई है।
बिहार में पानी सप्लाई में सुधार
2011 की जनगणना के अनुसार बिहार में केवल 2.8% परिवारों ने पीने के पानी के अपने मुख्य स्रोत की जानकारी दी। इसमें से 2.2% सफाई वाले या अपने परिसर के भीतर 0.6%बिना सफाई वाले बोरिंग किए पानी शामिल है। ऐसे परिवारों का राष्ट्रीय औसत लगभग दस गुना था 26.8%। वहीं ग्रामीण इलाकों में यह अंतर और भी बड़ा था। राष्ट्रीय स्तर पर 14% की तुलना में बिहार में केवल 1.1% घरों में ही उनके पीने के पानी का स्रोत था। आपको बता दें कि ये आंकड़े जल जीवन मिशन योजना के तहत जुटाए गए आंकड़ों पर आधारित है। योजना के अनुसार बिहार ने केवल 2016-17 के अंत में पाइप जलापूर्ति का 1.1% घरेलू कवरेज ही हासिल किया। 2015-16 में एनएफएचएस के चौथा दौर के सर्वेक्षण में बिहार में कुछ सुधार हुआ लेकिन एक अंतर बना रहा। सर्वेक्षण के मुताबिक राज्य में कुल मिलाकर 4.1% घरों और 2.5% ग्रामीण घरों में ही आवासों में पाइप लाइन के जरिए पानी का उपयोग किया गया या 30.1% और राष्ट्रीय स्तर पर यहा आंकड़ा 18.1% है। हालांकि,2011 और 2015-16 के बीच राज्य में पाइप जलापूर्ति में सुधार के संकेत हैं।
राज्य में सप्लाई वाटर में सबसे बड़ा सुधार हुआ है, हालांकि 2019-20 में जल जीवन मिशन योजना के आंकड़ों के अनुसार 2018-19 के अंत में 1.7% की तुलना में राज्य के 17.7% ग्रामीण परिवारों के घरों में पानी की आपूर्ति हो रही थी। 29 अक्टूबर को यह कवरेज 55.4% तक हो गया था जो राष्ट्रीय औसत 30.1% से बहुत अधिक था।
जल जीवन मिशन के तहत पाइप से जलापूर्ति
1 अप्रैल, 2020 को पाइप्ड पानी कनेक्शन वाले घरों की संख्या के मामले में बिहार 17.7% घरों को कवर करने के साथ 32 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 16 वें स्थान पर था। जल जीवन योजना के तहत एक घर को पूरी तरह से कवर किया जाता है। अगर उस घर के 100 मीटर के दायरे में 40 लीटर प्रति व्यक्ति (व्यक्ति) प्रति वर्ष सुरक्षित पेयजल मिलता है। 1 अप्रैल 2020 को बिहार में पाइप जलापूर्ति से कवर की गई आबादी 11.1% थी। प्राप्त डेटा के मुताबिक यह सभी 32 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में सबसे कम है।