भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले 45 साल में मानसून देश से 28 बार देरी से वापस गया है जिससे मौसम के रुख में बदलाव का संकेत मिलता है। वर्ष 1975 से लेकर 2020 तक चार बार (1978, 1979, 2001 और 2008) मानसून देश से 15 अक्टूबर को वापस गया है जो पिछले साल तक इसके वापस जाने की सामान्य नियत तारीख थी।
केरल में मानसून पहुंचने की सामान्य तारीख एक जून है। इस साल से मानसून के संशोधित कार्यक्रम के अनुसार सामान्य तौर पर यह पूरे देश में आठ जुलाई तक पहुंच जाता है। इस साल केरल में दक्षिण-पश्चिमी मानसून एक जून को पहुंचा और आठ जुलाई की सामान्य तिथि से 12 दिन पहले 26 जून तक पूरे देश में पहुंच गया।
मानसून के वापस जाने में विलंब हुआ। यह पश्चिमी राजस्थान और पंजाब के कुछ हिस्सों से वापस जाने की सामान्य तारीख से 13 दिन के विलंब से 28 सितंबर को वापस चला गया। इसके वापस जाने की तारीख इस साल संशोधन के बाद 17 सितंबर कर दी गई है। पूर्व में यह तारीख एक सितंबर थी।
शेष देश से मानसून वापसी की सामान्य तिथि से 13 दिन बाद 28 अक्टूबर को वापस चला गया। पूर्व में मानसून के वापस जाने की सामान्य तारीख 15 अक्टूबर थी जिसे अब संशोधित कर 17 अक्टूबर कर दिया गया है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम राजीवन ने कहा, मानसून के देर से आने और देर से वापस जाने का चलन रहा है। यह बड़े पैमाने पर बहु-दशकीय घटनाक्रम की वजह से हो सकता है। हमारे पास मानसून का 60 साल का चक्र है, इसलिए यह उसका हिस्सा हो सकता है। मानसून के रुख में बदलाव आया है।
वैज्ञानिक के रूप में मानसून का पिछले 35 साल से अध्ययन करते रहे राजीवन ने कहा, यह उसका हिस्सा हो सकता है या यह जलवायु परिवर्तन की वजह से हो सकता है। हम इसके बिलकुल सही कारण के बारे में सुनिश्चित नहीं हैं। हमें यह समझने के लिए विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता है। स्काईमेट वेदर के उपाध्यक्ष महेश पालावत ने कहा कि यह ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हो सकता