अमूमन घरेलू हिंसा या गुजारा भत्ता विवाद समेत अन्य मामलों में अदालत किसी एक के हक में फैसला सुनाती है। लेकिन, हाल ही में अदालत ने घरेलू हिंसा के एक मामले में पति-पत्नी दोनों को अपने-अपने हिस्से की गलतियों का अहसास कराया। अदालत ने जहां पति को गुजाराभत्ता नहीं देने पर बहानेबाजी का जिम्मेदार ठहराया तो वहीं पत्नी को नसीहत दी कि वह उच्च शिक्षित महिला है। ऐसे में अपनी योग्यता को घर पर बैठकर जाया न करे। वह कुछ काम कर सकती है। मामले में पति-पत्नी ने एक-दूसरे के खिलाफ याचिका दी थी।
रोहिणी स्थित प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश स्वर्णकांता शर्मा की अदालत ने पति को निर्देश दिए कि वह पत्नी और नाबालिग बेटी को 20-20 हजार रुपये प्रतिमाह गुजाराभत्ता दे। साथ ही नाबालिग बेटी की पढ़ाई का तमाम खर्च उठाए। वहीं, अदालत ने पत्नी को भी कहा कि वह उच्च शिक्षित महिला है। शादी के बाद तक वह एक कंपनी को चलाती रही है। लेकिन अब वह कुछ नहीं कर रही। वह अपनी काबिलियत को घर पर बैठकर बेकार ना करे। वह नौकरी तलाशने का प्रयास करे। इससे वह अपनी जिम्मेदारी संभालने के साथ ही अपनी योग्यता को निखार सकती है।
पति-पत्नी ने एक-दूसरे के खिलाफ दायर की थी याचिका
मामले में पति ने निचली अदालत द्वारा तय पत्नी व बेटी के लिए 20-20 हजार रुपये के गुजाराभत्ता रकम को ज्यादा बताते हुए कम करने की गुहार लगाई थी। पति का कहना था कि वह कारोबारी है और लॉकडाउन में नुकसान हुआ है। साथ ही पत्नी योग्य है लेकिन जान-बूझकर नहीं कमाती। वहीं, पत्नी का कहना था कि पति व उसका बेटा ऐशो-आराम की जिंदगी जी रहे हैं। पति के पास दो महंगी कारें हैं। लेकिन वह और उसकी बेटी खस्ताहाल जिंदगी जीने को मजबूर हैं।
मंदी के दौर में दो कारें तो गुजाराभत्ता देने में दिक्कत क्यों
अदालत ने पति-पत्नी दोनों के शपथपत्र और आयकर भुगतान का ब्योरा देखने के बाद कहा कि हैरत की बात है कि मंदी के इस दौर में पति दो महंगी कार चला सकता है। उनका रखरखाव कर सकता है। लेकिन, पत्नी व खुद की बेटी के लिए 40 हजार रुपये देना उसके लिए मुश्किल हो रहा है। बेटा जब पिता के साथ खुशहाल जीवन जी रहा है तो बेटी मां के साथ अभाव की जिंदगी क्यों बिताए? अदालत ने पति को गुजाराभत्ता देने का निर्देश दिया