बिहार विधानसभा चुनाव 2020 (Bihar Assembly Election) में विकास के लंबे चौड़े दावे के बीच इस बार बेरोजगारी का मुद्दा(unemployment issue) छाया हुआ है। यही वजह है कि इस चुनाव में इस बार दो राजनीतिक दलों(Political parties) ने भारी संख्या में रोजगार(employment issue) पैदा करने का वादा किया है। इन सबके बीच इन बड़ी पार्टियों ने तीन दशकों में उत्तर बिहार में परिदृश्य में फैले हुए निजी या सार्वजनिक औद्योगिक इकाइयों के पुनरुद्धार(Revival of industrial units) पर लगभग चुप्पी साधी हुई है।
औसतन छोटे पैमाने की ये प्रत्येक औद्योगिक इकाइयां लगभग 1000 लोगों को रोजगार देती थीं और चीनी, दवाइयों, भारी मशीनरी से लेकर सीप के बटनों तक के उत्पादों का उत्पादन या निर्माण करती थीं। इन्हें sap बटन उद्योग के रूप में जाना जाता था।
अकेले अगर चीनी कारखानों के बारे में बात करें तो इनमें से सिर्फ 15 तो उत्तरी बिहार में ही थे और प्रत्येक में कम से कम 1000 लोगों को रोजगार मिला हुआ था और ये फैक्ट्रियां 25000 किसानों से उपज खरीद रहे थे।
सुगौली के सीमांत किसान संजय कुमार पांडे ने बताया कि रंगदारी या उगाही की वजह से चीनी कारखानों में से कम से कम 11 नब्बे के दशक के मध्य में बंद हो गए थे। कुछ को बिजली आपूर्ति की समस्याओं के कारण बंद करना पड़ा। पांडे ने बताया कि भारत सरकार के तत्कालीन सचिव और अब बगहा के विधायक आरएस तिवारी की पहल पर फिर से शुरू सुगौली और लौरिया में दो को छोड़कर किसी भी फैक्ट्री को फिर से खोलने के लिए कोई पहल नहीं की गई थी।
बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के मोतीपुर चीनी कारखाने के पूर्व कर्मचारी राधेश्याम साह ने बताया कि मैं अपने परिवार में एकमात्र रोटी कमाने वाला व्यक्ति था। लेकिन दो अस्थायी बंदी के बाद मिल को 1996 में पूरी तरह से बंद कर दिया गया था। तब से इसके 600 स्थायी कर्मचारियों और 1200 अस्थायी कर्मचारियों को भाग्य भरोसे छोड़ दिया गया है। उसके बाद से न तो राज्य और न ही केंद्र सरकार ने इसे फिर से खोलने की कोई पहल की है।
वहीं पूर्वी चंपारण जिले के मेहसी में भी सीप बटन आधारित उद्योगों के लिए चीजें बेहतर नहीं हैं। इस उद्योग की शुरुआत मेहसी के निवासी और स्कूलों के एक इंस्पेक्टर इंस्पेक्टर भुल्लन लाल ने की थी। उन्होंने 1905 में सिकरना नदी में पाए गए सीप से बटन लगाना शुरू किया था।
इस संबंध में किसी समय स्वयं अपना सीप का बटन व्यवसाय चलाने वाले मेहसी के एमडी मकबूल ने बताया कि हमने हर महीने 10000 से 50000 रुपये कमाए। लेकिन नब्बे के दशक के मध्य में चीजें पूरी तरह से बदल गईं जब अपराधियों और दबंगों ने जबरन वसूली शुरू कर दी। छोटे उद्यमियों ने अपने प्रतिष्ठान बंद कर दिए। बड़े लोगों ने अपने व्यापार को राज्य के बाहर के स्थानों में शिफ्ट कर दिया। मकबूल ने बताया कि क्षेत्र में 10000 से अधिक लोग लगभग 150 सीप आधारित इकाइयों में लगे हुए थे जो बटन और फैंसी दीवार हैंगिंग का निर्माण करते थे।
बिहार में बंद होने वाली सबसे नवीनतम उद्योग रेल मंत्रालय का उद्यम भारत वैगन है। मुज़फ़्फ़रपुर और मोकामा में स्थित पिछले साल 2019 में बंद होने वाली इन दो इकाइयों में बहुत कम लागत पर हर साल 200 माल वैगन का उत्पादन होता था। कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष एसके वर्मा ने कहा कि मुजफ्फरपुर इकाई के लगभग 1600 कर्मचारियों ने अपनी आजीविका खो दी है। इनके अलावा पिछले 30 वर्षों में बंद औद्योगिक सम्पदा में स्थित लगभग 150 औद्योगिक इकाइयां कृषि उत्पादों और रसायनों के उत्पादन करतीं थीं।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इन उद्योगों को फिर से खोला जाता है तो बेरोजगारी का मुद्दा काफी हद तक हल हो जाएगा और एक बार जब युवाओं को नौकरी मिलनी शुरू हो जाएगी तो अपराध दर भी कम हो जाएगी। लेकिन इसे खोलने में किसी भी सरकार ने अपना रूझान नहीं दिखाया। विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त शिक्षक कृष्ण मोहन प्रसाद कहते हैं कि नीतीश कुमार की सरकार ने सुरक्षित पेयजल, प्रत्येक घर में निर्बाध बिजली की आपूर्ति और कंक्रीट की छत के ऊपर बने मकानों के अलावा उद्योग के मुद्दों पर कभी ध्यान नहीं दिया।
राजद RJD के महासचिव और प्रवक्ता एमडी इकबाल शमी ने दावा किया कि राजद के कार्यकाल में इनमें से कुछ इकाइयों को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया गया था। उन्होंने कहा- मुझे यकीन है कि युवाओं को रोजगार देने की घोषणा कर रहे तेजस्वी यादव के दिमाग में यह मुद्दा है।
मुज़फ़्फ़रपुर के विधायक और शहरी विकास मंत्री सुरेश कुमार शर्मा ने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने भारत वैगन इकाइयों को बचाने के लिए बहुत कोशिश की थी। लेकिन दोनों इकाइयां भारी घाटे में चल रही थीं। यहां तक कि इन इकाइयों को बंद करने का निर्णय भी यूपीए सरकार के दौरान लिया गया था। क्षतिपूर्ति के लिए हमने मधेपुरा में एक रेल इंजन निर्माण इकाई शुरू की है