भारतीय रेलवे के साथ ही कई देशों में डीजल रेल इंजन की आपूर्ति करने वाले वाराणसी के डीजल रेल इंजन कारखाना का नाम बदल दिया गया है। अब यह बनारस रेल इंजन कारखाना (बनारस लोकोमोटिव वर्क्स यानी बीएलडब्ल्यू) के नाम से जाना जाएगा। इसके लिए रेल मंत्रालय की ओर से सचिव सुशांत कुमार मिश्रा ने अधिकृत रूप से पत्र जारी कर जानकारी दी है।
स्थापना काल से ही यहां डीजल रेल इंजन का उत्पादन होता रहा है। बीते तीन सत्र से डीजल रेल इंजन का उत्पादन कम कर दिया गया। सत्र 2019-20 से यहां भारतीय रेलवे के लिए डीजल इंजन का उत्पादन पूर्णतया बंद हो गया। सीएलडब्ल्यू की तरह यहां भी सिर्फ विद्युत रेल इंजन का उत्पादन शुरू होने के बाद कारखाने से डीजल शब्द हटाने की कवायद चल रही थी। रेलवे बोर्ड को पत्र भी भेजा गया था। 28 अक्तूबर को केंद्र ने इसका नाम बनारस रेल इंजन कारखाना कर दिया।
58 साल तक देश के लिए बनाए डीजल इंजन, दक्षिण एशिया समेत कई देशों में निर्यात
काशीवासियों समेत पूर्वांचल भर के लोगों की जबान पर दशकों से चला आ रहा ‘डीएलडब्ल्यू’ अब कुछ साल में ‘बीएलडब्ल्यू’ में बदल जाएगा। रेल इंजन कारखाने का नाम अब बनारस लोकोमोटिव वक्र्स कर दिया गया है। हालांकि वर्ष 1961 से अब तक हर साल एक नई उपलब्धि जोड़ने वाले इस कारखाने ने 58 साल तक देश के लिए डीजल रेल इंजन का उत्पादन किया, अब समय के साथ खुद को ढाल लिया और विद्युत रेल इंजन का उत्पादन शुरू कर दिया है।
कारखाने ने स्थापना काल के बाद से कई पड़ाव पूरा किये और हर बार एक नई उपलब्धि के साथ खुद को राष्ट्रीय स्तर पर साबित किया है। यहां के कर्मचारियों की कार्य कुशलता और उत्पादन क्षमता को देखते हुए ही आरडीएसओ और रेलवे बोर्ड के जरिये कुल 11 पड़ोसी देशों में निर्यात भी किया जा चुका है और देश की प्रमुख निजी कंपनियों के लिए भी डीजल इंजन का उत्पादन करता आया है। जनसंपर्क अधिकारी अशोक कुमार ने बताया कि डीरेका प्रशासन को नाम बदले जाने से संबंधित पत्र मिल गया है।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने रखी थी आधारशिला: भारतीय रेलवे के साथ ही पूर्वांचल के कामगारों को काम और विकास की गति देने के लिए यहां प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने डीरेका की आधारशिला रखी थी। तब यहां किसानों की जमीन थी। वीरान सीवान में जंगलनुमा था। यहां के किसानों की जमीन लेकर उन्हें मुआवजा और नौकरी देने के साथ ही डीजल रेल इंजन कारखाना की स्थापना की गई। 23 अप्रैल 1995 को प्रथम राष्ट्रपति ने शिलान्यास किया था।
बीते सत्र से भारतीय रेल के लिए बंद हो गया उत्पादन
उत्पादन के मामले में प्रथम पुरस्कार प्राप्त कर चुके डीरेका में साल 2016-17 में बदलाव आना शुरू हुआ। इस सत्र में ही यहां विद्युत रेल इंजन बनाने की शुरुआत की गई। इसके बाद सत्र 2018-19 आखिरी सीजन था, जिसमें डीरेका ने भारतीय रेलवे के लिए डीजल रेल इंजन का उत्पादन किया।
सत्र 2016-17 के बाद से यहां लगातार विद्युत रेल इंजन का लक्ष्य बढ़ता गया। अब पूर्णतया विद्युत रेल इंजन का उत्पादन ही शुरू हो गया है। अब यहां केवल विदेशी ग्राहकों और देश की निजी कंपनियों के लिए कम क्षमता के डीजल रेल इंजन तैयार किये जा रहे हैं। बता दें कि जब यहां विद्युत रेल इंजन के निर्माण की शुरुआत हुई तो छंटनी की आशंका से घिरे कर्मचारियों ने विरोध भी शुरू किया था। जब सत्र 2018-19 में अगले सत्र के लिए एक भी डीजल इंजन का लक्ष्य नहीं मिला और आंतरिक स्तर पर ह्यपावरह्ण यांत्रिक से विद्युत अधिकारियों को स्थानांतरित की गई, इस दौरान भी कर्मचारियों में आक्रोश दिखा था। हालांकि बाद में सब सामान्य हो गया।