हार्ट फेलियर की स्थिति में फेफड़ों और शरीर के दूसरों अंगों को काम करने के लिए हार्ट पर्याप्त मात्रा में ब्लड नहीं पहुंचा पाता है। ऐसा तब होता है जब हार्ट डैमेज हो, कमजोर हो या जितना ब्लड पंप करना चाहिए वह उतना भी नहीं कर पा रहा हो। इस चीज़ को हल्के में लेने की गलती बिल्कुल न करें। हार्ट फेलियर की स्थिति में तुरंत उपचार की जरूरत होती है। हार्ट फेलियर, दिल के एक या दोनों ही हिस्सों को प्रभावित कर सकता है। जिसके पीछे कई वजहें हो सकती हैं। कोरोनरी हार्ट डिजीज़, दिल की अनियमित धड़कन, सूजन और हाइपरटेंशन जैसी समस्याएं हार्ट फेलियर की वजह बन सकती हैं। हार्ट फेल होने की वजह से हार्ट अटैक होता है, जिससे हार्ट मसल्स का बड़ा हिस्सा हमेशा के लिए खराब हो जाता है। इन्हें एंजियोप्लास्टी, बायपास सर्जरी और दवाइयों से भी ठीक नहीं किया जा सकता है।
हार्ट फेलियर के लक्षण
– हार्ट फेलियर के सबसे आम लक्षणों में सांस लेने में तकलीफ, पैर या पेट में सूजन आना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
– कूल्हे और पैर की मांसपेशियों में ऊंचाई पर चढ़ने, चलने या हल्का सा हिलने-डुलने पर भी दर्द व ऐंठन होता है।
– हर वक्त थकान महसूस होना भी इसके लक्षणों मे शामिल है।
हार्ट फ्लयोर का निदान
हार्ट फेलियर का उपचार मरीज द्वारा दी गई जानकारी, फिजिकल टेस्ट और कई दूसरे प्रकार के जांच के माध्यम से हो सकता है। ये टेस्ट हार्ट की कार्यक्षमता निर्धारित करने और हार्ट फेलियर के कारण खोजने की मदद से कर सकते हैं।
इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (हृदय की सोनोग्राफी)
– ब्लड टेस्ट
– यूरिन टेस्ट
– चेस्ट एक्स रे
– इकोकार्डियोग्राम
– कार्डियक एंजियोग्राफी
– सीटी, एमआरआई
इन्हें होता है हार्ट फेलियर का सबसे ज्यादा खतरा
– मोटापा, धूम्रपान, एल्कोहल का बहुत ज्यादा सेवन हार्ट फेलियर के खतरे को बढ़ा देता है।
– डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और कोरोनरी आर्टरीज़ डिजीज़ वाले मरीजों को भी इसका खतरा बना रहता है।
– एनाबॉलिक स्टेरॉयड या कैंसर की दवाएं भी हार्ट की हेल्थ को प्रभावित करती हैं।
– महिलाओं की तुलना में पुरुषों को हार्ट फेलियर का खतरा ज्यादा होता है।
– 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में हार्ट फेलियर का खतरा अधिक होता है।