गुजरात चुनाव में बीजेपी ने प्रचंड जीत दर्ज कर ली है। इतिहास रचते हुए बीजेपी ने 156 सीटें जीत ली हैं। इसी के साथ बीजेपी ने कई रिकॉर्ड स्थापित कर दिए हैं। रिकॉर्ड के साथ विपक्ष और खासकर कांग्रेस के लिए ये नतीजा कई संदेश भी लेकर आया है। गुजरात में भारतीय जनता पार्टी के 1980 में चुनावी राजनीति में आने के बाद की ये सबसे बड़ी जीत है।
विरोधियों की हार की बात की जाए तो पिछली बार 41 प्रतिशत वोट शेयर पाने वाली कांग्रेस इस बार 27 प्रतिशत पर सिमट गई है और उसके हिस्से के 13 प्रतिशत वोट शेयर पर आम आदमी पार्टी ने कब्जा कर लिया है। 150 के टारगेट पर चल रही बीजेपी को गुजरात की जनता ने 52 फीसदी वोट शेयर के साथ 156 सीटें दिला दी है। ऐसा बंपर जनादेश गुजरात की धरती पर आज तक किसी को नहीं मिला था और ये जनादेश तब मिला है जब 27 साल से गुजरात में भाजपा की सरकार है। पिछले 8 साल से गुजरात और दिल्ली में भाजपा के डबल इंजन की सरकार चल रही है। मतलब वहां एंटी इनकंबेंसी जैसा कोई फैक्टर नहीं था।
इन आंकड़ों को देख कर कहा जा सकता है कि पीएम मोदी के ऐलान के हिसाब से पीएम नरेंद्र मोदी के सारे रिकॉर्ड भूपेंद्र ने तोड़ डाले हैं। भूपेंद्र पटेल लगातार दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले हैं। अब एक तरफ गुजरात में भाजपा ने महाविजय का इतिहास रच डाला है तो दूसरी ओर विरोधी दल इस हाल में भी नहीं बचे हैं कि सम्मानजनक विपक्ष की भूमिका निभा सकें। पिछले चुनाव की तुलना में देखा जाए तो भाजपा को करीब 3 प्रतिशत वोट शेयर का फायदा हुआ है। कांग्रेस को 14 प्रतिशत के वोट शेयर का भारी नुकसान हुआ है और आम आदमी पार्टी को 13 प्रतिशत के वोट शेयर का भारी फायदा हुआ है। हालांकि गुजरात में सरकार बनाने का दावा करने वाले केजरीवाल की पार्टी दो अंकों में भी नहीं पहुंच पाई है।
इस प्रकार इस चुनाव को समझने के लिए यह समझना उपयोगी होगा कि आप की एंट्री ने चुनावी परिणामों को कैसे प्रभावित किया। कुल मिलाकर आप ने 13 फीसदी वोट शेयर पर 5 सीटें जीतीं, लेकिन गुजराती राजनीति में इसकी प्रविष्टि भौगोलिक रूप से केंद्रित है। सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात के 70 फीसदी निर्वाचन क्षेत्रों में इसे कम से कम 10 फीसदी वोट शेयर प्राप्त हुआ, लेकिन मध्य और उत्तर गुजरात के केवल 29 फीसदी निर्वाचन क्षेत्रों में भी यह 10 फीसदी ही पहुंचा।
कांग्रेस के प्रदर्शन पर भी नजर डालें तो उसने खुद ही कई ऐसी गलतियां की हैं, जिस वजह से उसका सबसे निराशाजनक प्रदर्शन देखने को मिला है। इस चुनाव में पार्टी ने एक तय रणनीति के तहत लोकल लीडरशिप पर ज्यादा फोकस किया था। 2017 की तरह राहुल गांधी का धुंआधार प्रचार देखने को नहीं मिला, प्रियंका गांधी और दूसरे बड़े कांग्रेस नेता भी गुजरात की धरती पर कम सक्रिय दिखे। इसी वजह से जनता भी कांग्रेस पर कोई भरोसा नहीं जता पाई।