सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को स्पष्ट किया कि दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले में जेएनयू के छात्र शरजील इमाम के संबंध में की गई टिप्पणियों से अदालत के समक्ष लंबित उसके मामले पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। हाईकोर्ट ने उत्तर पूर्वी दिल्ली में फरवरी 2020 के दंगों के पीछे कथित साजिश के एक मामले में सह-आरोपी उमर खालिद की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। हाईकोर्ट के 18 अक्टूबर के फैसले में उनके खिलाफ की गई टिप्पणियों के संबंध में इमाम की याचिका पर सुनवाई कर रही जस्टिस एस.के. कौल और जस्टिस ए. एस. ओका की पीठ ने कहा कि फैसले में एक पैराग्राफ में स्पष्ट किया गया है कि “यहां ऊपर कहा गया कुछ भी राय की अभिव्यक्ति के समान नहीं होगा, जिसका मामले के गुण-दोष पर कोई असर पड़े”।
जस्टिस कौल ने कहा, “ऐसा तब होता है जब लोग जमानत आवेदनों पर बहस करते हैं, जैसे कि यह गुण-दोष के आधार पर अपील है।” उन्होने कहा कि जमानत याचिकाओं पर 10 मिनट से ज्यादा बहस नहीं की जानी चाहिए। हाईकोर्ट ने जेएनयू के पूर्व छात्र खालिद की जमानत याचिका खारिज करते हुए अपने फैसले में कहा था कि वह अन्य सह-आरोपियों के साथ लगातार संपर्क में था और उसके खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सही थे।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, “… आरोप-पत्र को ध्यान से देखने और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि अपीलकर्ता (खालिद) शरजील इमाम सहित अन्य सह-अभियुक्तों के लगातार संपर्क में था, इस स्तर पर यह राय बनाना मुश्किल है कि यह मानने के लिए उचित आधार नहीं हैं कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया साबित नहीं हुआ है।”
इमाम की तरफ से पेश हुए वकील ने न्यायालय से कहा कि वे शीर्ष अदालत का रुख करने के लिए मजबूर हैं क्योंकि हाईकोर्ट द्वारा मामले में एक सह-आरोपी को जमानत देने से इनकार करने के आदेश में की गई टिप्पणियों के कारण याचिकाकर्ता के प्रति गंभीर पूर्वाग्रह पैदा होगा। पीठ ने कहा कि उसने हाईकोर्ट की खंडपीठ के फैसले के उपरोक्त पैराग्राफ को देखा है। अदालत ने कहा, “हम स्पष्ट करते हैं कि याचिकाकर्ता (इमाम) के संबंध में की गई किसी भी टिप्पणी से याचिकाकर्ता पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा…”।