उत्तराखंड में नकली ब्रांडेड जीवनरक्षक एंटीबायोटिक दवाएं जमकर बनाई जा रही हैं। पिछले तीन से चार सालों में 10 से अधिक फैक्ट्रियां पकड़ीं गईं हैं। नकली दवा के सौदागर फूड लाइसेंस की आड़ में एंटीबायोटिक बना रहे हैं। दवा बनाने के लिए अलग लाइसेंस की जरूरत पड़ती है। औषधि नियंत्रण विभाग और खाद्य सुरक्षा विभाग इन पर लगाम नहीं लगा पा रहे हैं।
रुड़की, भगवानपुर क्षेत्र में नकली दवाओं के पुराने प्रकरणों में जांच पूरी भी नहीं हो पाती है कि नया मामला सामने आ जाता है। नकली दवा बनाने के अधिकांश मामले फूड लाइसेंस की आड़ में किए जा रहे हैं। फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी आफ इंडिया की ओर से लाइसेंस दिया जाता है।
होटल संचालक भी फूड लाइसेंस लेते हैं। इस लाइसेंस के बिना कोई व्यक्ति खाने-पीने से जुड़ा काम नहीं कर सकता। फूड लाइसेंस में खाने-पीने के सामान की बिक्री के अलावा विटामिन, प्रोटीन पाउडर आदि भी बनाए जाते हैं। फूड लाइसेंस लेने की प्रक्रिया अपेक्षाकृत आसान है। इसकी आड़ में ही नकली दवाओं का खेल होता है। इसमें सबसे अधिक एंटी बायोटिक बनाई जाती है।
रुड़की क्षेत्र में पिछले तीन-चार साल में दस से अधिक नकली दवा की फैक्ट्री पकड़ी गई। इसमें से छह से अधिक फैक्ट्री फूड लाइसेंस की आड़ में चल रही थी। दो साल पहले जब लगातार ऐसे मामले आए तब औषधि नियंत्रण विभाग और खाद्य सुरक्षा विभाग की ओर से कई फैक्ट्रियों की जांच की गई।
शनिवार को भगवानपुर के डाडा जलालपुर में पकड़ी गई नकली दवा फैक्ट्री भी फूड लाइसेंस की आड़ में चल रही थी। यहां भी एंटीबायोटिक दवाएं बनाई जा रही थी। दोनों ही विभाग ऐसे लाइसेंस लेकर नकली दवा बनाने वालों पर ठोस कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं।
बिल से करें खरीद-बिक्री
बताया जा रहा है कि भगवानपुर में जो नकली दवा फैक्ट्री पकड़ी गई वह करीब आठ माह से चल रही थी। इस अवधि में वह कितनी दवा बाजार में बेच चुकी है इसका कोई अंदाजा नहीं है। अब तक मुख्य आरोपी भी नहीं पकड़ा जा सका है। औषधि नियंत्रण विभाग का कहना है कि दवा के होल सेलर, रिटेलर को बिलिंग पर माल लेना चाहिए। इससे गड़बड़ी का पता लग जाएगा। इसके साथ ही कंपनी के बारे में भी पता करना चाहिए। जिससे बाजार में नकली दवा की बिक्री न हो पाए।
उलझन में रहते हैं डॉक्टर
नकली दवा की बिक्री के मामले में मरीजों के सामने सबसे अधिक समस्या रहती है। डॉक्टर की ओर से लिखी दवा का असर नहीं होता। डॉक्टर भी इससे परेशान रहते हैं। इससे मरीज को ही नुकसान होता है। सीएमएस डॉ. संजय कंसल का कहना है कि अगर दवा में साल्ट ही नहीं होगा तो मरीज को लाभ नहीं होगा। सही दवा लिखने के बाद भी डॉक्टर की उलझन भी बढ़ जाएगी। इसलिए नकली दवा बेहद खतरनाक है।
दो टीमें की गई गठित
नकली दवा बनाने के मामले में फरार आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस की दो टीमों का गठन किया गया है। बताया जा रहा है कि नकली दवा का यह नेटवर्क कई राज्यों तक फैला हुआ है। मुख्य आरोपी की गिरफ्तारी के लिए पुलिस प्रयास में जुटी हुई है। पांच लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करते हुए दो को गिरफ्तार किया जा चुका है।
इंस्पेक्टर अमरजीत सिंह ने बताया कि नकली दवाई बनाने का मुख्य आरोपी इससे पूर्व मे भी दो बार नकली दवा बनाने के मामले में जेल जा चुका। फरार आरोपियों की धरपकड़ के लिए दो टीम गठित की गई है। उन्होंने दावा किया कि मुख्य आरोपी व अन्य आरोपियों को जल्द ही गिरफ्तार लिया जाएगा।
विभाग की ओर से फूड लाइसेंस नहीं दिए जाते। दवा कंपनियां भी बहुत हैं। वहां लगातार निरीक्षण किया जाता है। होल सेलर और रिटेलरों को बिल से दवा की खरीद-बिक्री करनी चाहिए।
अनीता भारती, ड्रग इंस्पेक्टर
फूड लाइसेंस केंद्रीय स्तर से जारी होता है। भगवानपुर में जो फैक्ट्री पकड़ी गई उसका स्थानीय स्तर से लाइसेंस जारी नहीं हुआ था।