इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना जारी होते ही जमीन सरकार में निहित हो जाती है। अधिग्रहीत भूमि खरीदने या बेचने का किसी को अधिकार नहीं है। ऐसे में अधिग्रहीत भूमि खरीदने वाले को मुआवजा पाने का भी अधिकार नहीं है।
कोर्ट ने इस तर्क को नहीं माना कि याचिका में केवल मुआवजे की मांग की गई है, अधिग्रहण को चुनौती नहीं दी गई है। ऐसे में जमीन खरीदने वाले को मुआवजा पाने का अधिकार है। कोर्ट ने विपिन अग्रवाल के मामले में सुप्रीम कोर्ट के स्थापित विधि सिद्धांत को अपनाते हुए मुआवजा दिलाए जाने की मांग में दाखिल याचिका खारिज कर दी है।
यह आदेश न्यायमूर्ति एमएन भंडारी एवं न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने दिया है। अजय कुमार श्रीवास्तव की याचिका पर अधिवक्ता सत्येन्द्र नाथ श्रीवास्तव व केंद्र सरकार के अधिवक्ता गौरव कुमार चंद ने बहस की। मामले के तथ्यों के अनुसार राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण के लिए जमीन के अधिग्रहण की अधिसूचना जारी कर दी गई । उसके बाद याची ने भूमि स्वामी से अधिग्रहीत जमीन का बैनामा करा लिया और मुआवजे के लिए आवेदन किया।
कहा कि उसने जमीन खरीद ली है इसलिए मुआवजा उसे ही दिया जाए। एडीएम गाजीपुर ने सात दिसम्बर 2019 को यह कहते हुए उसकी अर्जी खारिज कर दी कि अधिग्रहण के बाद सरकार की जमीन की बिक्री व खरीद मान्य नहीं है। याचिका में इसे चुनौती दी गई थी।