समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव अपने एक बयान को लेकर फंस गए हैं। चुनाव आयोग को निशाने पर लेते हुए दिए गए बयान पर उन्हें नोटिस जारी हो गई है। चुनाव आयोग ने अखिलेश से अपने बयान को लेकर सबूत मांगे हैं। अखिलेश को 10 नवंबर तक चुनाव आयोग को इस मामले में जवाब देना है। अखिलेश ने आयोग पर निशाना साधते हुए सपा के राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान कहा था कि भाजपा के इशारे पर यूपी में हर विधानसभा क्षेत्र से 20-20 हजार यादव और मुस्लिमों का नाम वोटर लिस्ट से हटा दिया गया था। अखिलेश ने इसे ही सपा की हार का बड़ा कारण भी बताया था। कुछ मीडिया रिपोर्टों में कहा गया कि अखिलेश यादव ने नाम हटाने की जांच की मांग की थी ताकि सच्चाई का पता चल सके।
समाजवादी पार्टी प्रमुख को भेजे गए पत्र के अनुसार चुनाव आयोग ने कहा है कि कानून जाति या धर्म के आधार पर मतदाता सूची प्रदान नहीं करता है। ईसीआई जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में लिखी अन्य बातों के साथ-साथ चुनावी पंजीकरण/ संशोधन/अंतिम सूची का प्रकाशन शुद्धता के साथ करना सुनिश्चित करता है। यहां पर जानबूझकर गलत घोषणा सहित अनुचित हस्तक्षेप के लिए दंड और आपराधिक कानूनों का भी प्रावधान है। हालांकि एचटी ने अभी पत्र की प्रति नहीं देखी है।
इसमें आगे कहा गया है कि पार्टी प्रमुख द्वारा लगाए गए आरोप बेहद गंभीर हैं और चुनावों की निष्पक्षता और लोकतंत्र पर प्रभाव डालते हैं। पत्र में मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया है कि कथित तौर पर दिया गया बयान इस लिहाज से भी ठीक नहीं है कि वह एक अनुभवी राजनेता होने के साथ ही एक राज्य मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के प्रमुख और सबसे बड़े राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में चुनावी प्रक्रियाओं में शामिल रहे हैं। आयोग ने अखिलेश यादव से 10 नवंबर 2022 तक इस मामले में विवरण के साथ सबूत प्रस्तुत करने के लिए कहा है, ताकि आवश्यक कार्रवाई की जा सके।
आयोग ने पत्र में कहा है कि इतनी बड़ी संख्या में अगर नाम हटाए गए हैं तो विधानसभावार डेटा प्रस्तुत करें। इसमें विधानसभा क्षेत्रवार संख्या और हटाए गए नामों का विवरण भी दें। अगर इस तरह के मतदाताओं ने कोई शिकायत की है तो उसके बारे में भी बताएं। वोटरों के किसी प्रतिनिधिमंडल ने इस बारे में अगर एसएसआर या आम चुनाव की प्रक्रिया के दौरान किसी भी डीईओ या सीईओ से कोई शिकायत की है तो उसका भी ब्योरा उपलब्ध कराएं।
पत्र में यह भी कहा गया है कि किसी भी विधानसभा क्षेत्र से 20000 लोगों या इतनी बड़ी संख्या में वोटरों का नाम हटाने की कोई शिकायत नहीं मिली है। इस तरह की कोई शिकायत न तो विधानसभा चुनावों के दौरान सामने आई और न ही उसके बाद मिली है। इस तरह का मामला जिला या राज्य स्तर के निर्वाचन अधिकारियों के संज्ञान में भी नहीं लाया गया है।
केवल अलीगंज विधानसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के एक उम्मीदवार ने लगभग 10,000 अल्पसंख्यक और अनुसूचित जाति के मतदताओं का नाम सूची से हटाने के संबंध में एक शिकायत की थी। उत्तर प्रदेश के सीईओ ने इसकी जांच की लेकिन आरोप गलत मिले थे।
संबंधित खबरें