एक दिन पहले ही सपा नेता इमरान मसूद को बसपा में लाने और पश्चिमी यूपी का संयोजक बनाने के बाद मायावती ने 22 अक्टूबर को पार्टी की अहम बैठक बुलाई है। इस बीच सदस्यता अभियान की समीक्षा करते हुए एक बार फिर मंडलीय व्यवस्था में बदलाव किया है। अधिकतर मंडल के मुख्य जोन इंचार्ज को बदल दिया है। उनके निशाने पर अब कांग्रेस भी आ गई है। ऐसे में माना जा रहा है कि मायावती निकाय चुनाव को गंभीरता से लेते हुए तैयारियों में जुट गई हैं। निकाय चुनाव को अपने चुनाव चिह्न पर लड़ने की घोषणा बसपा ने की है।
जोन इंचार्जों में बदलाव
लखनऊ मंडल में शमसुद्दीन रायनी और अशोक गौतम, गोरखपुर मंडल- इंदल राम, सुधीर कुमार भारती, सुरेश कुमार गौतम, हरिप्रकाश निषाद, सुरेश चंद्र को मुख्य जोन इंचार्ज बनाया गया है। प्रयागराज- नौशाद अली, अमरेंद्र बहादुर पासी, राजू गौतम, अभिषेक गौतम व जगन्नाथ पाल, झांसी- लालाराम अहिरवार, डा. मदन राम, बृजेश जाटव, बीआर अहिरवार, कैलाश पाल, अयोध्या- दिनेश चंद्रा, पवन गौतम, विश्वनाथ पाल, सर्वेंद्र अंबेडकर और कानपुर- डा. मदन राम, जितेंद्र शंखवार, अनिल पाल को मुख्य जोन इंचार्ज बनाया गया है।
22 को बुलाई अहम बैठक
मायावती ने 22 अक्तूबर को एक अहम बैठक बुलाई है। इसमें मंडलीय मुख्य जोन इंचार्ज, जिलाध्यक्ष, बसपा के जिलाध्यक्ष, राष्ट्रीय व प्रदेश पदाधिकारियों को बुलाया गया है। निकाय चुनाव को लेकर यह बैठक काफी अहम मानी जा रही है। इसमें वह सदस्यता अभियान की चर्चा करेंगी और निकाय चुनाव को लेकर जरूरी दिशा-निर्देश देंगी।
कांग्रेस पर निशाना
बसपा सुप्रीमो मायावती ने दलित नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने पर कटाक्ष करते हुए कहा है कि जब ये सत्ता में रहते हैं तो इनको इस जाति की याद नहीं आती है। सत्ता के बाहर होने पर वोट की खातिर इस बिरादरी की याद आती है। क्या यही कांग्रेस का दलितों के प्रति वास्तविक प्रेम है?
मायावती ने गुरुवार को ट्वीट कर कहा है कि कांग्रेस का इतिहास गवाह है कि इन्होंने डा. भीमराव अंबेडकर व इनके समाज की हमेशा उपेक्षा की। इस पार्टी को अपने अच्छे दिनों में दलितों की सुरक्षा व सम्मान की याद नहीं आती, बल्कि बुरे दिनों में इनको बलि का बकरा बनाते हैं। कांग्रेस को अपने अच्छे दिनों के लंबे समय में अधिकांशतः गैर-दलितों व वर्तमान की तरह सत्ता से बाहर बुरे दिनों में दलितों को आगे रखने की याद आती है। क्या यह छलावा व छद्म राजनीति नहीं?