मध्य प्रदेश के बहुचर्चित व्यापमं घोटाला मामले को लेकर कोर्ट ने बड़ी कार्रवाई की है। सुनवाई के दौरान राजधानी भोपाल में 5 आरोपियों को 7-7 साल की सजा सुनाई गई है। और इसके अलावा उन सभी आरोपियों पर 10 हजार रूपये का जुर्माना लगाया गया है। यह फैसला विशेष न्यायाधीश नीति राज सिंह सिसोदिया ने सुनाया हैं।
दरअसल 2013 में व्यापमं ने एमपी पुलिस आरक्षक भर्ती परीक्षा आयोजित की थी। जिसमें 4 परीक्षार्थी कमल किशोर, अमर सिंह, नागेंद्र सिंह और सुरेश सिंह ने किसी और दूसरे युवक को परीक्षा में बैठाया था। नागेंद्र सिंह के स्थान पर रवि कुमार राजपूत ने परीक्षा दी थी। इससे मामले में पहले एसटीएफ और फिर सीबीआई ने मामले की जांच की थी।
जानकारी के अनुसार व्यापमं घोटाला उजागर होने का सिलसिला साल 2013 में शुरू हुआ। जब इंदौर से 7 ‘मुन्नाभाई’ पकड़े गए थे। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर व्यापमं घोटाले की जांच जुलाई 2015 को सीबीआई को सौंपी गई थी। इसकी जांच चल रही थी, और आज इसपर निर्णय हुआ है। मध्य प्रदेश के चर्चित व्यापमं घोटाले से जुड़े हजारों आरोपियों की गिरफ्तारी हुई है। बताया जाता है कि इस मामले में 48 लोगों की रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत हो चुकी है।
बता दें कि मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाला अब तक का सबसे बड़ा शैक्षणिक घोटाला माना जाता है। इस मामले में कोर्ट में चल रही सुनवाई का हाल यूं है कि जजों की ही कमी पड़ गई है। व्यापम घोटाले से जुड़े ज्यादातर मामलों की सुनवाई सीबीआई की विशेष अदालत में होती है।
एमपी पुलिस और सीबीआई की चार्जशीट के आधार पर, जालसाजी, धोखाधड़ी, रिश्वतखोरी, सरकारी कार्यालय के दुरुपयोग और कई अन्य से संबंधि घोटाले में परीक्षण भोपाल, इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर में विभिन्न जिला अदालतों में चल रहे हैं। 2012 और 2013 में पीएमटी परीक्षा में ‘इंजन बोगी’ घोटाले सहित 54 मामलों की सुनवाई एकल अदालत कर रही है जिसमें 1,300 से अधिक आरोपी है।
वहीं सीबीआई द्वारा 2,000 से ज्यादा लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई थी और अब केवल वही आरोपी जेल में हैं जिन्हें दोषी ठहराया गया है। इनमें से कुछ की मौत हो गई है, जिनमें एमपी के पूर्व राज्यपाल रामनरेश यादव के बेटे शैलेश यादव भी शामिल हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा तो इस घोटाले की सुनवाई पूरी होने में कम से कम एक दशक और लग सकता है।
इस घोटाले को लेकर पहली बार 2013 में व्हिसलब्लोअर के एक समूह ने जानकारी दी थी। जिसके बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घोटाले की जांच के लिए एसटीएफ का गठन किया था। जांच के दौरान कई आरोपियों और गवाहों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई और वे सभी मौतें अभी भी एक रहस्य बनी हुई हैं।