नए अध्यक्ष को लेकर जब कांग्रेस में जब यह राय बन रही थी कि अगला अध्यक्ष गांधी परिवार के बाहर से हो तो संगठन में अनुभव, कद और गांधी परिवार के प्रति वफादारी को पैमाना बनाकर जब नजरें दौड़ाई गईं तो राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पहली पसंद बनकर उभरे। कांग्रेस संगठन के मुखिया के रूप में गहलोत की ताजपोशी करके खुद को सहज करना चाहती है ताकि वंशवाद के आरोपों से पिंड छुड़ा सके। अध्यक्ष बनने को लेकर गहलोत शुरू में अनिच्छुक दिखे फिर उन्होंने मुख्यमंत्री और अध्यक्षी दोनों पदों को संभालने की परोक्ष रूप से पेशकश कर दी। हालांकि, एक व्यक्ति एक पद का फॉर्म्यूला याद दिलाने के बाद वह कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के लिए पर्चा दाखिल करने के लिए राजी हुए, लेकिन सचिन पायलट को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भी नहीं देखना चाहते है।
वह राजस्थान के सीएम पद के लिए अपने पसंद के उम्मीदवार चाहते हैं। इस चक्कर में सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनने से रोकने के लिए जिस तरह से गहलोत गुट के 82 विधायकों ने रविवार की रात को इस्तीफा दे दिया है और कांग्रेस हाईकमान से टकरा गए हैं, उससे यह तो साफ हो ही गया है कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी राजस्थान के मुख्यमंत्री को हल्के में ले रहे थे और पूरा मामला उन्हें नींद से जगाने वाला है। पूरे प्रकरण में अशोक गहलोत सार्वजनिक रूप से कहीं भी नहीं हैं, लेकिन इसे आसानी से समझा जा सकता है कि इशारों-इशारों में उन्होंने गांधी परिवार को अपनी राजनीतिक ताकत का स्वाद चखा दिया है। ऐसे में अब इस बात के भी कयास लग रहे हैं कि अशोक गहलोत ‘हाईकमान’ के उम्मीदवार के रूप में 28 या 29 सितंबर को कांग्रेस अध्यक्ष के लिए चुनाव का पर्चा दाखिल करेंगे या नहीं।
जयपुर में रविवार को जो कुछ भी हुआ उसकी कांग्रेस हाईकमान ने सपने में भी कल्पना नहीं की होगी। सोनिया और राहुल ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि सचिन पायलट को नीचा दिखाने के लिए अशोक गहलोत गुट कांग्रेस सरकार को दांव पर लगा देगा। ऐसे में जिनकी भी यह सोच रही होगी अशोक गहलोत के अध्यक्ष बनने के बाद भी पार्टी में गांधी परिवार का ही सिक्का चलेगा, उन्हें अपने इस विचार पर पुनर्विचार करने की जरूरत है।
गहलोत गुट के तेवर ने पार्टी को अजीब स्थिति में डाल दिया है । कांग्रेस अगर उनकी मांग मानकर सचिन पायलट को किनारे लगा देती है और अशोक गहलोत की पसंद का मुख्यमंत्री बनाती है तो हाईकमान की हनक के साथ-साथ नैतिक सत्ता खत्म हो जाएगी। इसका दूसरा नुकसान यह होगा कि सचिन पायलट अपमानित होने के बाद कांग्रेस से हमेशा के लिए दूरी बना सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो अगले विधानसभा चुनाव से पहले सचिन पायलट बीजेपी का रुख कर सकते हैं। हालांकि बीजेपी ने साफ किया है कि सचिन पायलट के साथ फिलहाल उसकी कोई बातचीत नहीं चल रही है। एक विकल्प और भी है कि सख्त तेवर दिखाते हुए पार्टी बगावत को नजरअंदाज कर दे और सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बना दे, लेकिन ऐसी स्थिति में संभावना है कि गहलोत खेमा उन्हें सहयोग नहीं देगा और उनके लिए सरकार चलाना आसान नहीं होगा।