उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में भारी बारिश ने तबाही मचा दी। कई नदियों का जलस्तर बढ़ गया। इसी क्रम में घाघरा नदी का भी जलस्तर बढ़ा है। लखीमपुर खीरी के धौरहरा तहसील के दो गांव देखते ही देखते गायब हो गए। अब इन गांवों का सिर्फ कागजों पर ही जिक्र बचा है। दोनों गांवों को घाघरा नदी निगल गई। कटान प्रभावित परिवार खेत खलिहानों और चकरोडों पर पड़े हैं। प्रशासन पीड़ित परिवारों के पुनर्वास के लिए जमीन की तलाश कर रहा है। वही पिछले छह सालों में धौरहरा के पांच गांवों का नामोनिशान मिट चुका है। एक दशक की बात करें तो 15 से ज्यादा गांव अपना वजूद खो चुके हैं।
घाघरा नदी के कटान में विलासपुरवा और महादेव पुरवा का गुरुवार को एक साथ नामोनिशान मिट गया। करीब 1500 की आबादी वाले महादेवपुरवा और तकरीबन 1300 की आबादी वाले साहबदीन पुरवा के लोग बेघर हो चुके हैं। घर कट गए तो इन गांवों के लोगों के सामने अब पुनर्वास की सबसे बड़ी समस्या खड़ी हो गई है। तहसील प्रशासन कटान विस्थापितों के लिए जमीन की तलाश कर रहा है। धौरहरा में गांवों का वजूद खत्म होना कोई नई बात नहीं है। दर्जनों गांव कटान की वजह से अस्तित्वहीन हो चुके हैं। बाछेपारा, मोटेबाबा, भदईपुरवा, सिद्धन पुरवा और मोचनापुर जैसे बड़े गांव जिनकी आबादी चार से पांच हजार के बीच रही, ऐसे पूरे के पूरे गांव घाघरा नदी की लहरों के साथ बह चुके हैं।
कट चुका है परगना, रिकार्ड में अब भी
फिरोजाबाद धौरहरा तहसील का परगना है। यह गांव दशकों पहले कट चुका है। हालांकि राजस्व अभिलेखों में आज भी परगना फिरोजाबाद दर्ज है। घाघरा इस इलाके में डुंडकी, हटवा, चकदहा, शेखूपुर और पलिहा समेत कई ग्राम पंचायतों को खत्म कर चुकी है। धौरहरा में शारदा का भी कहर कोई कम नहीं बरपा है। शारदा ने यहां मन्दूरा, मड़वा, रैनी, समदहा और चहमलपुर जैसे बड़े गांवों को देखते देखते उजाड़ दिया। घर और जमीनें कट जाने के बाद कटान पीड़ित परिवार अभी भी जहां तहां पड़े हैं। कोई हाइवे के किनारे बस गया तो कोई खेत खलिहान में ही पड़ा रहा।
सरकारी जमीन नहीं तो कहां हो पुनर्वास
जिन गांवों में कटान होता है। वहां नदी न सिर्फ घरों को काटा बल्कि जमीनों का भी कटान किया। जिससे गांवों में सरकारी जमीन भी नहीं बची जिस पर प्रशासन कटान पीड़ितों को बसा पाए। ऐसे में कटान पीड़ित परिवार अपने पुनर्वास का जैसे तैसे खुद ही बंदोबस्त करते हैं। मगर यह बंदोबस्त कर पाना भी पीड़ितों के लिए आसान नहीं होता है। अपना वजूद खो चुके गांवों की जमीन भले ही न बची हो। मगर कागजों पर गायब हो चुके गांव न सिर्फ जिंदा हैं बल्कि गायब हो चुके गांवों की प्रधानी भी कायम है।
इस मामले में धौरहरा के एसडीएम धीरेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि कटान पीड़ितों की सूची तैयार किया जा रहा है। राजस्वकर्मियों की प्रमाणित सूचना के बाद पीड़ितों को नियमानुसार मुआवजा दिया जाएगा। साथ ही सरकारी योजनाओं के तहत आवास भी उपलब्ध कराए जाएंगे। कटान प्रभावित गांवों में ग्रामसमाज की जमीनें नहीं बची हैं। नजदीकी ग्राम सभाओं में जमीन का बंदोबस्त कर विस्थापित परिवारों को बसाया जाएगा।