मध्य प्रदेश के जबलपुर से एक ऐसी तस्वीर सामने आई है जिसमें एक मजबूर पिता एक दूध मुहे बच्चे को कंधे पर टांग कर रिक्शा चलाने पर मजबूर है। सरकारें कितने भी दावे करें कि वह गरीबों के उत्थान पर काम कर रही हैं। लेकिन इस तस्वीर को देखने के बाद सरकार के दावों की पोल खुलती नजर आ रही है।
जबलपुर का रिक्शा चालक राजेश नाम का यह मजबूर पिता अपने दो बच्चों को का पेट पालने के लिए सुबह से शाम तक हाड़ तोड़ मेहनत करता है। इससे जो कमाई होती है उससे ही दोनों बच्चों और उसका पेट पलता है। कंधे पर एक हाथ से अपने मासूम बेटे को संभालकर दूसरे हाथ से साइकिल रिक्शे की हैंडल थामने वाला राजेश रोजाना घर से निकलता है तो साथ में उसका बेटा भी रहता है। वह उसको साथ लेकर शहर भर में घूमकर सवारियां तलाशता है और सवारी मिलने पर एक हाथ से ही रिक्शा चलाकर उन्हें मंजिल तक पहुंचाता है।
पेट और परिवार पालने की मजबूरी इंसान से क्या-क्या नहीं कराती इस बात का जीता जागता उदाहरण राजेश है। राज्य से लेकर केंद्र तक की सरकारें तमाम योजनाओं का दावा भले करती हों लेकिन वो सभी योजनाएं इन जैसे लाचार लोगों के पास आने से पहले ही दम तोड़ देती हैं। सरकारी दावों के उलट राजेश की यह मजबूरी यह बताने के लिए काफी है कि सरकारी योजनाओं का फायदा भले ही किसी को मिले लेकिन जरूरतमंदों को अब भी नसीब नहीं हो पा रही हैं।
चंद दिनों पहले ही देश ने आजादी का अमृत महोत्सव मनाया है उसके बावजूद भी गरीबी लाचारी और मजबूरी की ऐसी तस्वीरें विकास के दावों को कटघरे में खड़ा कर रही हैं। बिन कपड़ों के अपने मासूम बेटे को कंधे पर लेकर और एक हाथ से साइकिल रिक्शा चलाते राजेश पर जिस की भी नजर पड़ती है। वह उसकी मेहनत और जिंदादिली की दाद देने से खुद को रोक नहीं पाता। साथ ही ऐसे लोग सरकार से भी सवाल करते हैं कि तरक्की के असली मायने बड़ी-बड़ी इमारतें तानना नहीं बल्कि ऐसे लोगों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ना भी है, जिसे फिलहाल सरकारें नहीं समझ पा रही हैं।
रिक्शा चालक राजेश ने बताया कि घर में बच्चे के अलावा उसकी बहन है इन दोनों का पेट पालने के लिए मुझे मजबूरी में रिक्शा चलाना पड़ता है लोग मुझसे पूछते भी हैं कि बच्चे को लेकर रिश्ता क्यों चलाते हो तो उन्हें मेरा जवाब रहता है कि अगर रिक्शा नहीं चलाऊंगा तो इन दोनों को खिलाऊंगा क्या? राजेश ने कहा कि बच्चे की मां नहीं है इसलिए मुझे कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है लेकिन मजबूरी के चलते मुझे इसे कांधे पर टांग कर रिक्शा चलाना पड़ता है।