भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एन.वी. रमण ने सोमवार को कहा कि उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण को लेकर केंद्र तथा दिल्ली सरकार की विधायी एवं कार्यकारी शक्तियों के दायरे से संबंधित कानूनी मुद्दों पर सुनवाई करने के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ का गठन किया है।
सीजेआई ने कहा कि जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच केंद्र तथा दिल्ली सरकार के बीच विवाद पर सुनवाई करेगी। एक वकील ने जस्टिस रमण, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस सी.टी. रविकुमार की बेंच के समक्ष इस मामले का उल्लेख किया था। सुप्रीम कोर्ट ने छह मई को दिल्ली में सेवाओं के नियंत्रण का मुद्दा पांच-सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजा था।
सीजेआई ने तब कहा था, ”संविधान के प्रावधानों और संविधान के अनुच्छेद 239एए (जो दिल्ली की शक्तियों से संबंधित है) के अधीन और संविधान पीठ के फैसले (2018 के) पर विचार करते हुए, ऐसा प्रतीत होता है कि इस पीठ के समक्ष एक लंबित मुद्दे को छोड़कर सभी मुद्दों का पूर्ण रूप से निपटारा किया गया है, इसलिए हमें नहीं लगता कि जिन मुद्दों का निपटारा हो चुका है, उन पर दोबारा विचार करने की जरूरत है।”
बेंच ने कहा था, ”इस न्यायालय की संविधान पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 239एए की व्याख्या करते हुए इस विवाद पर विशेष रूप से कोई टिप्पणी नहीं की, इसलिए संविधान पीठ द्वारा इस मामले पर एक आधिकारिक फैसले के लिए उपरोक्त मामले को उसके पास भेजना उचित होगा।”
केंद्र सरकार ने सेवाओं के नियंत्रण और संशोधित जीएनसीटीडी अधिनियम, 2021 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली दिल्ली सरकार की दो अलग-अलग याचिकाओं पर संयुक्त रूप से सुनवाई करने का अनुरोध किया था। जीएनसीटीडी अधिनियम में उपराज्यपाल को कथित तौर पर अधिक शक्तियां प्रदान की गई है।
यह याचिका 14 फरवरी 2019 के उस खंडित फैसले को ध्यान में रखते हुए दायर की गई है, जिसमें जस्टिस ए.के. सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण (अब दोनों सेवानिवृत्त) की बेंच ने भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश को उनके विभाजित फैसले के मद्देनजर राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण के मुद्दे पर अंतिम फैसला लेने के लिए तीन-सदस्यीय बेंच के गठन की सिफारिश की थी।
जस्टिस भूषण ने तब कहा था कि दिल्ली सरकार के पास प्रशासनिक सेवाओं पर कोई अधिकार नहीं हैं। हालांकि, जस्टिस सीकरी की राय उनसे अलग थी।