नीतीश कुमार ने 2020 में सातवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी तो बीजेपी के पास उसकी जेडीयू से ज्यादा विधायक थे। बीजेपी ने चुनाव के पहले ही साफ कर दिया था कि जेडीयू की कम सीटें आएंगी तो भी सीएम नीतीश कुमार ही होंगे। लिहाजा कम सीटें होने के बावजूद बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया। नीतीश अब बिहार की सबसे बड़ी पार्टी आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन के समर्थन से सरकार बनाने जा रहे हैं। जाहिर है नीतीश ने बीजेपी को दरकिनार कर अपने लिए सत्ता की राह तो बना ली है लेकिन बिहार के लोगों के मन में यह सवाल भी बार-बार कौंध रहा है कि जब नीतीश प्रदेश की दूसरी बड़ी पार्टी बीजेपी से डील नहीं कर पाए तो सबसे बड़ी पार्टी राजद, उसके सुप्रीमो लालू यादव, खुद सीएम बनने की महत्वाकांक्षा रखने वाले तेजस्वी यादव और अपनी अलग स्टाईल में राजनीति करने वाले तेजप्रताप यादव से डील कैसे करेंगे।
कायदे से कहीं भी जो सबसे बड़ी पार्टी होती है उसका नेता ही मुख्यमंत्री बनता है। लेकिन नीतीश कुमार के साथ ऐसा नहीं है। नीतीश कुमार इससे ऊपर उठे हुए नेता है। उनका चेहरा, उनकी इमेज और लोकप्रियता की वजह से भाजपा ने भी विधानसभा चुनाव में जेडीयू से ज्यादा सीटें जीतने के बावजूद उन्हें मुख्यमंत्री बनाया। आरजेडी भी जेडीयू से डेढ़ गुनी बड़ी पार्टी होने के बावजूद नीतीश कुमार को सीएम बनाने के लिए तैयार है क्योंकि वह सीएम का चेहरा थे।
बीजेपी के साथ सीएम नीतीश का गठबंधन टूटा इसलिए है क्योंकि वह बीजेपी के साथ डील नहीं कर पा रहे थे। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि सुशील मोदी के सरकार में बतौर डिप्टी सीएम रहते हुए नीतीश कुमार बीजेपी से आसानी से डील कर लेते थे। नीतीश कुमार को बीजेपी जो कहना होता था वे सुशील मोदी से कहते थे और सुशील मोदी अपनी पार्टी से वो काम करवा लिया करते थे। बीजेपी के साथ जब भी कोई तनाव की स्थिति पैदा होती थी तो सुशील मोदी उसमें मध्यस्थ की भूमिका में आ जाते थे और वो तनाव खत्म हो जाता था। मामला बिगड़ता नहीं था। नियंत्रित हो जाता था। चाहे विवाद कुछ भी रहा हो। लेकिन अब सुशील मोदी बिहार सरकार में नहीं है। बीजेपी ने उन्हें राज्यसभा में भेज दिया लेकिन उनकी स्थान पर सरकार में आए डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद या पार्टी के अन्य प्रादेशिक नेता सुशील मोदी की भरपाई नहीं कर पाए। लिहाजा स्थितियां बिगड़ीं तो गठबंधन टूट गया। अब सीएम नीतीश एक बार फिर राजद की अगुवाई वाले महागठबंधन के साथ सरकार बनाने जा रहे हैं लेकिन वो राजद के साथ डील कैसे करेंगे यह बड़ा सवाल है।
बताते हैं कि नीतीश कुमार जब 2013 में आरजेडी के साथ गए और 2015 में उन्होंने पहली बार बीजेपी के साथ सरकार बनाई तब भी आरोप लगा था कि पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव प्रशासनिक मामलों में दखल देते हैं। अधिकारियों को सीधे फोन करते हैं। तेज प्रताप यादव अपनी अलग तरह की राजनीति करते और प्रशासन चलाते हैं। इसके साथ ही तेजस्वी यादव की राजनीतिक महात्वाकांक्षा सीएम बनने की है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि आरजेडी का बार्गेनिंग पावर हमेशा अधिक रहेगा। आरजेडी का हमेशा अपर हैंड रहेगा। वो हमेशा सौदेबाजी करना चाहेगी। तो नीतीश के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि वो राजद के साथ डील कैसे करेंगे।
जिन लालू यादव पर पिछली महागठबंधन सरकार में सरकारी कामकाज और प्रशासनिक मामलों में हस्तक्षेप का आरोप लगा था उनसे इस बार कैसे जूझेंगे? तेज प्रताप यादव को कैसे कंट्रोल करेंगे? और तेजस्वी यादव की मुख्यमंत्री बनने की महात्वाकांक्षा को कैसे नियंत्रित रखेंगे? राजनीतिक जानकारों का कहना है कि ये सब सवाल नीतीश के सामने बड़ी चुनौती के तौर पर खड़े हैं। नीतीश कुमार को अब लालू, तेजस्वी, तेजप्रताप और राजद चार मोर्चों पर डील करना पड़ेगा। सुशील मोदी के समय में बीजेपी से डील करना आसान था। इस बार सुशील मोदी नहीं थे इसलिए स्थितियां सम्भल नहीं पाईं और गठबंधन टूट गया।
तेजस्वी ने सरकार गठन से पहले ही दिया अपनी महत्वाकांक्षा का संकेत
राजद नेता तेजस्वी यादव ने सरकार गठन से पहले ही अपनी महत्वाकांक्षा का संकेत दे दिया है। बताया जा रहा है कि तेजस्वी ने नीतीश के सामने डिप्टी सीएम के साथ गृहमंत्री का पद भी अपने पास रखने की इच्छा जाहिर कर दी है। गृहमंत्री का पद क्या मायने रखता है कि इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि नीतीश कुमार ने यह पद कभी अपने प्रिय डिप्टी सीएम सुशील मोदी को भी नहीं दिया था।