मानसून में बारिश और बाढ़ की वजह की प्राकृतिक आपदाओं के खतरे को सरकारी सिस्टम की लापरवाही ने ज्यादा बढ़ा दिया है। पिछले साल राज्य के विभिन्न स्थानों पर हुई घटनाओं के बाद सुरक्षात्मक इंतजाम नहीं होने से एक बार फिर भूस्खलन का खतरा मंडरा रहा है। आपदा के भय से लोग सहमे हैं। आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान ने पिछले साल राज्य के विभिन्न स्थानों पर आई आपदा और उसके बाद किए गए सुरक्षा इंतजामों का जायजा लिया तो सिस्टम की सुस्त चाल की यह यह तस्वीर सामने आई…
नई टिहरी: शांता नदी का खतरा बरकरार
देवप्रयाग में 11 मई 2021 की शाम को शांता नदी में आए सैलाब ने भारी तबाही मचाई थी। तीन मंजिला बहुद्देश्यीय भवन, 15 दुकानें ध्वस्त हो गई थीं। 12 मई को तत्कालीन सीएम तीरथ सिंह रावत और कई कैबिनेट मंत्रियों ने मौका मुआयना कर मलबा हटाने, आईटीआई को देवप्रयाग में अन्य स्थान पर चलाने के आदेश भी दिये थे, लेकिन एक साल बाद भी हालात जस के तस हैं। अब जाकर यहां पर मात्र मलबा सफाई का काम शुरू हो पाया है। इस बार यदि शांता में जलभराव हुआ तो बड़ी तबाही हो सकती है।
श्रीनगर: कब होगा चमधार का ट्रीटमेंट
2021 में श्रीनगर क्षेत्र का सर्वाधिक आपदा प्रभावित स्पॉट फरासू में हनुमान मंदिर के पास और चमधार वाला क्षेत्र था। फरासू हनुमान मंदिर वाले स्पॉट पर एनएच लोनिवि की ओर से पहाड़ी को काटकर सड़क चौड़ीकरण कर स्थायी ट्रीटमेंट कर दिया गया है, जबकि चमधार में अभी स्थायी ट्रीटमेंट का काम बाकी है। यहां पर पहाड़ी से भूस्खलन रोकने को अस्थायी व्यवस्था कर सड़क चौड़ी कर दी गई है। इस वर्ष अभी यहां पर पहाड़ी से मलबा गिरने की आशंका बनी हुई है।
चमोली: सुभाषनगर में अभी तक नहीं हुआ ट्रीटमेंट , खतरा बरकरार
चमोली जिले के मुख्यालय गोपेश्वर का सुभाषनगर 2021 में सर्वाधिक आपदाग्रस्त क्षेत्र रहा। दर्जनों मकानों में दरारें आ गयीं थीं। यह पूरा क्षेत्र भू-धंसाव की जद में आ गया था। लोगों ने भू-धंसाव के ट्रीटमेंट के लिए आंदोलन भी किया। अब मानसून एक बार फिर से आ गया है, लेकिन ट्रीटमेंट की प्रक्रिया अब तक शुरू हो नहीं हो पाई।
जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी एनके जोशी ने बताया ट्रीटमेंट के लिये 33 करोड़ का डीपीआर को मंजूरी मिल गई है। जोशीमठ का एक बड़ा हिस्सा भू-धंसाव की जद में हैं। 2021 से यहां के लोग विस्थापन और भू-धंसाव के ट्रीटमेंट की मांग कर रहे हैं। पर अभी तक कोई स्थाई समाधान नहीं हो पाया है । ऐसे में इस बरसात में भी सुभाषनगर में रह रहे लोग भयभीत हैं।
रुद्रप्रयाग: नरकोटा में खतरे की जद में लोग
2021 में नरकोटा में बारिश और बादल फटने की घटना से काफी नुकसान हुआ। इसके साथ ही सारी क्षेत्र के झालीमठ तोक में भी भूस्खलन से 13 परिवार खतरे की जद में आ गए थे। भूस्खलन की रोकथाम के लिए ठोस व्यवस्था न होने से अब भी खतरा बरकरार है। अब भी लोग खतरे की जद में गांव में ही रह रहे हैं।
झालीमठ तोक में रह रहे लोग भी डर-डर कर रह रहे हैं। बारिश होते ही लोगों की मुश्किलें बढ़ रही है। आपदा प्रबंधन अधिकारी नंदन सिंह रजवार ने बताया कि प्रभावित गांवों को मानसून के दौरान सतर्क रहने को कहा गया है।
उत्तरकाशी: भगवान भरोसे है मांडों गांव, चार लोगों की हो गई थी मौत
19 जुलाई 2021 में अतिवृष्टि की वजह से मांडो गांव और कंकराडी मुस्टिक सौड़ में भारी नुकसान हुआ था। एक बच्ची समेत चार लोगों की मौत हो गई थी। उत्तरकाशी लम्बगांव मोटर मार्ग को जोड़ने वाला साड़ा पुल ध्वस्त हो गया। आपदा के बाद फौरी तौर पर शासन-प्रशासन ने सहायता और कुछ सुरक्षात्मक उपाय किए थे, लेकिन भूस्खलन रोकने के लिए स्थायी सुरक्षा दीवारें भी अब तक नहीं बनीं हैं।
सीएम ने भी यहां सुरक्षा व्यवस्था को बेहतर करने के लिए घोषणा की थी, उस पर भी काम शुरू नहीं हुआ। जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी देवेन्द्र पटवाल के अनुसार कुछ निर्माण कार्य शासन स्तर पर विचाराधीन है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस साल भी बारिश ज्यादा हुई तो फिर से नुकसान हो सकता है।
नैनीताल: हर साल डराता है बलिया नाला
नैनीताल का बलिया नाला भूस्खलन प्रभावित सबसे संवेदनशील क्षेत्र है। यहां करीब 2000 लोग रहते हैं। बीते साल भूस्खलन के कारण यहां कुछ घर जमींदोज हो गए थे। हर साल प्रशासन यहां रहने वाले लोगों को मानसून से पहले सुरक्षित स्थानों पर जाने के नोटिस देता है। इस साल भी लोगों को घर खाली करने के नोटिस दे दिए गए हैं। यहां सुरक्षा के कोई ठोस इंतजाम नहीं है। बलिया नाला के ट्रीटमेंट के लिए सिंचाई विभाग की ओर से एक नया प्रपोजल तैयार किया जा रहा है।
पिथौरागढ़: न भूस्खलन रुका, न पुल बने
वर्ष 2021 में जिले की बंगापानी तहसील आपदा से सबसे अधिक प्रभावित रही है। यहां के टांगा, धापा, जोशा, घुरुड़ी की आठ हजार से अधिक की आबादी आपदा की मार सह रही है। पिछली आपदा के बाद से अब तक यहां पर्याप्त सुरक्षा के इंतजाम नहीं हैं। भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा दीवार निर्माण नहीं हुआ है। कई जगह पुल बह गए थे जो अब तक नहीं बने हैं। इस वर्ष भी यहां भूस्खलन का खतरा बना हुआ है।
चंपावत: रोपा में सालभर से नहीं बनीं दीवार
वर्ष 2021 में चम्पावत में सर्वाधिक आपदा प्रभावित क्षेत्र तेलवाड़ा और रोपा था। भारी बारिश में मलबा कच्छी रसोई और मकान के कमरें में घुस गया। इसमें एक मां-बेटी की मौत हो गई। पिछले मानसून सीजन के बाद तेलवाड़ा में दीवार को नगर पालिका ने ठीक करा लिया है। जबकि रोपा में क्षतिग्रस्त दीवार को अब तक ठीक नहीं किया जा सका है। रोपा गांव में दीवार निर्माण नहीं होने से अब भी खतरा बना हुआ है।
आपदा के दौरान क्षतिग्रस्त होने वाले मार्ग, पुल को यथासंभव जल्द से जल्द दुरूस्त करने का प्रयास किया जाता है। निर्माण कार्यों और जनसुविधाओं से जुड़े विभागों को इसके निर्देश हैं। लंबित कार्यों की रिपोर्ट ली जाएगी।