लोजपा से टिकट चाहने वाले दावेदारों की सांसें अटकी हुई हैं। उनका एक-एक दिन बेचैनी में बीत रहा है। बिहार विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों का नामांकन भी शुरू हो गया है। पर, आलम यह है कि एनडीए का हिस्सा लोजपा रहेगी या नहीं यह भी अभी तय नहीं है। इसको लेकर खासकर टिकट के दावेदार काफी परेशान हैं।
टिकट के दावेदारों की सबसे बड़ी दुविधा यह है कि वे अपने क्षेत्र में जाकर खुलकर कुछ बोलने की स्थिति में नहीं हैं। आखिर वे किसके पक्ष में बोलेंगे। गठबंधन में रहना है या नहीं रहना है, यही तय नहीं है। ऐसे में भावी उम्मीदवार किस आधार पर अपने समर्थकों से अपने लिए वोट मांगेंगे? यही वजह है कि टिकट के दावेदार कई दिनों से दिल्ली में जमे हैं और लगातार अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान और पार्टी के अन्य पदाधिकारियों से मुलाकात कर रहे हैं।
एनडीए के घटकदलों की हर गतिविधि पर वे पैनी नजर बनाए हुए हैं। एनडीए में बने रहने को लेकर लोजपा के अधिकतर पुराने नेता, सांसद और विधायक अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष से कर रहे हैं। वहीं, कुछ ऐसे भी हैं जो चाहते हैं कि लोजपा अकेले चुनाव लड़े। लोजपा अगर अकेले मैदान में उतरती है तो कम-से-कम 143 सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करेगी। वहीं, अगर एनडीए में बने रहकर पार्टी चुनाव मैदान में उतरती है तो उसके काफी कम उम्मीदवार को मौका मिलेगा।
गौरतलब हो कि एनडीए के तहत वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में लोजपा के 42 उम्मीदवार मैदान में थे। इस बार एनडीए का हिस्सा जदयू भी है। जदयू की दावेदारी काफी अधिक है। ऐसे में एनडीए के तहत 2015 के बराबर लोजपा को सीटें मिलनी मुश्किल है। दूसरी समस्या यह है कि एनडीए के तहत लोजपा लड़ती भी है तो उसे कौन-कौन सी सीटें मिलेंगी, यह तय नहीं है। सीटों पर ही तय होगा कि किसे टिकट मिलेगा और किसे नहीं। वर्ष 2015 में लोजपा को दो सीटों पर विजय मिली थी। वहीं तरारी विधानसभा में लोजपा के उम्मीदवार मात्र 272 वोट से माले से हार गए थे।
ऐसे में लोजपा किसी भी कीमत में तरारी सीट छोडने को तैयार नहीं है। वहीं, इस सीट पर भाजपा भी अपना उम्मीदवार उतारना चाहती है। इन्हीं सब कारणों से लोजपा के टिकट के दावेदार खासे परेशान हैं। लोजपा सुप्रीमो चिराग पासवान की भाजपा के आला नेताओं से कई दौर की बात हुई है और यह जारी भी है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि आखिर ऊंट किस करवट बैठता है।