चर्च विवाह प्रमाणपत्र आधार के लिए मान्य नहीं है। यह बात तब सामने आई जब आधार से जुड़े एक मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई। अब बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा है। याचिका में ईसाई महिलाओं ने आधार कार्ड में अपना नाम बदलवाने के दौरान आ रही “चुनौतियों” का जिक्र किया है। महिलाओं का कहना है कि उन्हें अपने आधार कार्ड में नाम बदलवाने में दिक्कतें आ रही हैं क्योंकि चर्च विवाह प्रमाणपत्र आधार के लिए एक वैध दस्तावेज नहीं है।
जस्टिस रेवती-मोहिते डेरे और माधव जामदार ने पिछले हफ्ते रोमन कैथोलिक ईसाई मौरिसा अल्मेडा (27) की याचिका पर सुनवाई की थी। महिला ने 26 दिसंबर, 2021 को अवर लेडी ऑफ मर्सी चर्च, वसई में स्वप्निल से शादी की थी जिसके बाद इस साल 19 जनवरी को पैरिश प्रीस्ट द्वारा विवाह प्रमाण पत्र जारी किया गया था। प्रमाण पत्र को चांसलर, वसई सूबा द्वारा प्रमाणित किया गया था, और उसके बाद उसे नोटरीकृत किया गया था।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, 31 जनवरी को, मंत्रालय में ईसाई विवाह रजिस्ट्रार ने प्रमाण पत्र को मंजूरी दे दी और उस पर मुहर लगा दी और ऐसा ही गृह विभाग ने भी किया। उनकी याचिका में कहा गया है कि 14 फरवरी को, वसई आधार केंद्र ने उनके फॉर्म को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि चर्च विवाह प्रमाणपत्र “उचित नहीं है” और आधार कार्ड के लिए इसे स्वीकार नहीं जाता है।
कर्मचारियों ने कहा कि महिला के पास विशेष विवाह अधिनियम के तहत या मंत्रालय में ईसाई विवाह रजिस्ट्रार के समक्ष शादी करने या आधिकारिक राजपत्र में अपना नाम बदलने के विकल्प थे। अल्मेडा ने वसई और मुंबई क्षेत्र के चर्चों, दोस्तों और परिवार से पूछताछ की और पता चला कि वह अकेली नहीं है बल्कि अन्य ईसाई महिलाओं के लिए, आधार कार्ड, पैनकार्ड, बैंक खाते, पासपोर्ट आदि में शादी के बाद अपना नाम बदलना एक कठिन काम बन गया है।