उत्तराखंड में जल रहे जंगलों से ग्लेशियर प्रभावित होने लगे हैं। डेढ़ महीने से धधकते जंगलों से निकल रहे ब्लैक कार्बन और अन्य कणों से हिमालयी ग्लेशियरों पर एक परत बन रही है और उनका रंग काला होता जा रहा है। ऐसी स्थिति में ग्लेशियरों के पिघलने की गति सामान्य से करीब 20 फीसदी तक बढ़ सकती है और इनके टूटने का खतरा भी बढ़ेगा। वैज्ञानिकों के एक अध्ययन में यह बात सामने आई है। जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान के वैज्ञानिक मानते हैं यह सिलसिला कुछ दिन और चला तो परत मोटी होने का खतरा है।
उत्तराखंड में आग से पहाड़ी जिलों में वायु प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ा है। अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, नैनीताल जैसे शहरों में जहां सामान्य दिनों में वायु गुणवत्ता सूचकांक 50 से कम रहता था, इन दिनों 100 से ऊपर है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, हवा के साथ यह काला धुआं ग्लेशियर तक पहुंच रहा है और उसे खराब कर रहा है।
हवा में कार्बन के साथ ओजोन की मात्रा भी बढ़ी
एरीज नैनीताल के वरिष्ठ वायुमंडल वैज्ञानिक डॉ नरेन्द्र सिंह ने बताया कि आग के बाद हवा में ब्लैक कार्बन की मात्रा तेजी से बढ़ी है। सामान्य हालात में इसकी मात्रा दो माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होनी चाहिए लेकिन जंगल की आग के कारण 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से 15 तक पहुंच रही जिससे ग्लेशियरों पर खतरा बढ़ा है। सामान्य दिनों 40 से 50 पीपीबी यानी पर पार्ट बिलियन रहने वाले ओजोन की मात्रा इन दिनों 100 तक रिकार्ड की गई है।
जंगल की आग से ग्लेशियरों पर खतरा बढ़ा गया है। ब्लैक कार्बन और अन्य पार्टिकुलेट मैटर हवा के साथ ग्लेशियरों तक पहुंच रहे हैं। इन्हें जल्द काबू नहीं किया गया तो ग्लेशियरों पर मोटी परत बन सकती है। इससे ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने का खतरा बढ़ेगा।