श्रीलंका की बदहाल आर्थिक स्थिति को लेकर लोग सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। बुनियादी चीजों को लेकर भी आम लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है लेकिन चीन द्वारा फंड किए जा रहे पोर्ट सिटी पर काम जारी है। चीन ने हाल के सालों में श्रीलंका में कई हाईवे, पुल, पोर्ट, इंडस्ट्री टाउन और तेल रिफाइनरी आदि का निर्माण किया है। यह एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव का एक उदाहरण मात्र है।
श्रीलंका की राजनीतिक ढांचे का हिस्सा है चीन
कोलंबो स्थित सार्वजनिक नीति संगठन सेंटर फॉर पॉलिसी अल्टरनेटिव्स के प्रमुख पैकियासोथी सरवनमुट्टू ने एबीसी न्यूज से बातचीत में कहा है कि चीन अपने सामरिक महत्व वाले प्रोजेक्ट्स के लिए आर्थिक तौर पर कमजोर देशों को कर्ज देने के पॉलिसी पर काम कर रहा है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह उन देशों की आर्थिक समस्याओं को ठीक करने में मदद करे। हालांकि यह सच है चीन अब श्रीलंका की राजनीतिक ढांचे का हिस्सा है।
चीनी कर्ज के जाल में फंसा श्रीलंका
चीन ने हाल ही में सोलोमन द्वीप के साथ एक सुरक्षा समझौता किया है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि चीन यहां नौसैनिक अड्डा बना सकता है। यह भारत और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के लिए बड़ा झटका है जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के प्रभाव को कम करने की बातें कहते रहते हैं। चीन ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में हाल के सालों में लगातार अपना प्रभाव बढ़ाया है और सोलोमन और श्रीलंका उसके उदाहरण मात्र हैं। ऐसा ही चलता रहा तो कई और उदाहरण देखने को मिल सकता है।
चीन ने श्रीलंका की तरह ही बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान सहित कई अफ्रीकी देशों में अपने पैर जमा रहा है। अमेरिका चीन की इस पॉलिसी को कर्ज-जाल की कूटनीति कहता है लेकिन एक्सपर्ट्स मानते हैं कि यह उससे कहीं अधिक बारीक है।
श्रीलंका की मदद क्यों नहीं कर रहा चीन?
सरवनमुत्तु का मानना है कि श्रीलंका जिस संकट से गुजर रहा है उसमें हमें सहायता की सख्त जरूरत है। लेकिन चीन ने खुद को इस मसले से दूर कर लिया है और कहा है कि आईएमएफ के पास जाओ। क्योंकि चीन अगर श्रीलंका को उबारता है तो उसके पास शायद इसी तरह की सहायता पाने के लिए अन्य देशों की कतार होगी।