मध्य प्रदेश कांग्रेस में विधानसभा चुनाव 2023 के पहले समीकरण बदल रहे हैं और 2018 में जिन नेताओं की जो भूमिकाएं थीं, वह बदले जाने के संकेत दिखाई देने लगे हैं। पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव की भूमिका आने वाले चुनाव में समन्वय की भूमिका हो सकती है लेकिन उनके लिए यह राह आसान नहीं होगी। उनके लिए खुद दिग्विजय सिंह चुनौती बन सकते हैं।
मध्य प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव को हाईकमान ने 2018 में अप्रैल में हटाकर कमलनाथ को पीसीसी चीफ बनाया था और उस समय कमलनाथ को दिल्ली में राजनीतिक प्रबंधन का महारथी माना जाता था। हालांकि राष्ट्रीय राजनीति में तब तक बनी छवि को प्रदेश में कांग्रेस सरकार के गिरने से धक्का लगा है और इसमें उनकी टीम की अहम भूमिका रही। उस समय पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के अच्छे संबंध थे क्योंकि विधानसभा चुनाव 2018 में दिग्विजय सिंह ने नाराज नेताओं को मानने में कई बैठकें की थीं। सरकार गिरने के बाद कमलनाथ-दिग्विजय के बीच संबंध पूर्व जैसे नहीं रहे और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के समय नहीं देने पर धरना देते हुए दिग्विजय की टिप्पणी से दूरियां सड़क पर दिखाई दे गईं।
अब समन्वय की भूमिका वाले नेता की तलाश
पार्टी को विधानसभा चुनाव 2023 में नेताओं के बीच समन्वय की भूमिका अदा करने वाले नेता की तलाश की परिस्थितियां दिखाई दे रही हैं। कमलनाथ के पास दो पदों को लेकर पार्टी में एक गुट द्वारा दबी जुबान से उठाई जा रही मांग के बीच ऐसे नेता की तलाश में हाईकमान से मिले अरुण यादव सक्रिय नजर आए हैं। सूत्र बताते हैं कि कमलनाथ ने सोमवार को प्रदेश में पार्टी के सीनियर नेताओं और पूर्व मंत्रियों की बैठक बुलाई गई थी लेकिन इसमें नेतृत्व का मुद्दा नहीं उठे तो यादव कुछ नेताओं से मिलने पहुंचे थे। नेता प्रतिपक्ष के प्रबल दावेदार माने जा रहे डॉ. गोविंद सिंह के यहां यादव ने पहुंचकर चर्चा की थी। बताया जाता है कि इस चर्चा में उन्हें बैठक में इस तरह की बात नहीं उठाने का आग्रह किया गया था जिससे बैठक का मूल उद्देश्य पूरा हो सके।
बुंदेलखंड के दौरे में नेताओं का साथ
दिग्विजय सिंह ने कमलनाथ के पीसीसी चीफ बनने के बाद क्षेत्रों में दौरे करके नेताओं और कार्यकर्ताओं से संवाद किया था और इस बार दिग्विजय सिंह अभी शांत हैं लेकिन अरुण यादव ने इसकी शुरुआत की है। दतिया के पीतांबर पीठ से दौरे की शुरुआत की गई और यहां विधायक व हारे प्रत्याशियों सहित कई नेताओं ने यादव के दौरे में कार्यकर्ताओं के साथ मुलाकात की व कार्यकर्ता संवाद आयोजन किए। इसी तरह निवाड़ी और टीकमगढ़ में भी यादव की कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें हो रही हैं। पीसीसी के संगठन प्रभारी पूर्व महामंत्री चंद्रिका प्रसाद द्विवेदी का कहना है कि यादव को बुंदेलखंड दौरे में अच्छा रिस्पांस मिल रहा है। कांग्रेस के लिए अच्छे संकेत हैं कि सभी लोग मिलकर सामने आ रहे हैं।
आसान नहीं राह
मध्य प्रदेश कांग्रेस में गुटीय राजनीति का दबदबा रहा है और ऐसे में यादव के लिए समन्वय की राह आसान नहीं सकती है। इसमें सबसे बड़ा पेंच दिग्विजय सिंह बन सकते हैं क्योंकि 2018 में वे इस भूमिका को निभा चुके हैं। इसलिए यह भूमिका वे किसी और को मिलने पर कामयाब होते देख सकेंगे या नहीं, यह बड़ा सवाल है। इसमें दिग्विजय सिंह के समर्थक नेताओं वाले सहयोगी संगठन युवा कांग्रेस और महिला कांग्रेस भी मुश्किलें पैदा कर सकते हैं। युवा कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष विक्रांत भूरिया हैं तो महिला कांग्रेस की अध्यक्ष विभा पटेल हैं। इसी तरह प्रदेश कांग्रेस का एक अन्य गुट सुरेश पचौरी का है जिसके नेता अभी राष्ट्रीय नेतृत्व की नजर में पिछड़े हुए हैं मगर प्रदेश में उनके समर्थक अभी सक्रिय हैं।