बिहार चुनाव के लिए एनडीए में संख्या तय करने के साथ ही सीटों के बंटवारे पर भी माथापच्ची जारी है। जदयू-भाजपा की ओर से जारी मंथन में अब तक 49 सीटें ऐसी चिह्नित हुई हैं, जहां साल 2015 के चुनाव में दोनों ने एक -दूसरे को पटकनी दी थी। वहीं, राजद से नाता तोड़कर जदयू में शामिल हुए सात विधायकों के कारण अब इन सीटों पर किसकी दावेदारी हो, इस पर भी जिच कायम है। इस तरह एनडीए में सीट बंटवारे में अभी 56 सीटों की पहचान की गई है, जिसका बंटवारा आलानेता मिल-बैठकर ही करेंगे। हालांकि आला नेताओं का दावा है कि एनडीए में सीट को लेकर कोई विवाद नहीं है और जल्द संख्या के साथ ही सीटों की भी पहचान हो जाएगी।
दरअसल, साल 2015 के विधानसभा चुनाव की तुलना में इस बार का चुनावी समीकरण अलग है। पिछले चुनाव में जदयू और भाजपा एक-दूसरे के खिलाफ थे। इस कारण दोनों दल एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरे थे। विगत चुनाव में जहां जदयू ने भाजपा को 27 सीटों पर चुनाव में हराया था तो भाजपा ने जदयू को 22 सीटों पर शिकस्त दी थी। अब बदले समीकरण में दोनों दल इस चुनाव में एकसाथ मैदान में उतर रहे हैं। ऐसे में पिछली बार जिन सीटों पर जदयू-भाजपा एक-दूसरे के खिलाफ थे, उस पर किसकी दावेदारी होगी, इस पर मंथन हो रहा है।
दूसरे दलों से भी आने से हुई परेशानी
सीटों के बंटवारे में दूसरे दलों से विधायकों के आने के कारण भी परेशानी उत्पन्न हो रही है। हाल ही में राजद छोड़ सात विधायक जदयू में शामिल हुए हैं। इन विधायकों में पातेपुर की विधायक प्रेमा चौधरी, गायघाट से महेश्वर यादव, परसा से चंद्रिका राय, केवटी से फराज फातमी, सासाराम से अशोक कुमार कुशवाहा, तेघड़ा से वीरेन्द्र कुमार और पालीगंज से जयवर्धन यादव हैं। राजद से आए इन विधायकों के खिलाफ कई सीटों पर भाजपा चुनाव लड़ी थी पर वह हार गई थी। हालांकि 2015 के चुनाव से पहले इन सीटों पर भाजपा के विधायक जीतते रहे हैं।
परम्परागत सीटें छोड़नी होंगी
सीटों के बंटवारे में एनडीए के घटक दलों को परम्परागत सीटों से समझौत करना पड़ सकता है। आलानेताओं के अनुसार सीटों के बंटवारे में 2010 आधार बनेगा। साथ ही यह भी देखा जाएगा कि 2015 के चुनाव में उस सीट पर किस दल का कब्जा है। अगर यह आधार बना तो दोनों दल को अपनी-अपनी कुछ परम्परागत सीटों पर समझौत करना पड़ सकता है। मसलन, पालीगंज, परसा जैसी सीट भाजपा की परम्परागत सीट मानी जाती है। साल 2015 के पहले इन सीटों पर भाजपा का कब्जा रहा है। अब चूंकि राजद छोड़कर जदयू में आने वाले सभी मौजूदा विधायक हैं। इस कारण इनको इस बार के चुनाव में फिर से मौका मिलना तय माना जा रहा है। ऐसे में भाजपा को सीट बंटवारे में परम्परागत सीटों से समझौता करना पड़ सकता है। वहीं, बैंकुठपुर, दीघा जैसी कई सीटें जदयू की परंपरागत रही हैं। इस बार यहां से भाजपा के विधायक हैं। इस बार के सीट बंटवारे में इन सीटों का क्या होगा, यह आने वाला समय बताएगा।
कुछ नई सीटें मिलेंगी
जानकारों के अनुसार एनडीए के घटक दल कुछ ऐसी सीटों पर भी अपने उम्मीदवार उतार सकते हैं जिस पर उन्होंने अब तक एक या दो बार ही चुनाव लड़ा है। मसलन, कोसी इलाके की अधिकतर सीटों पर जदयू के उम्मीदवार जीतते रहे हैं। साल 2010 के चुनाव में देखें तो भाजपा की उपस्थिति कोसी में कम थी। चूंकि इस बार भाजपा को अपनी कई परम्परागत सीटें छोड़नी पड़ सकती है, इसलिए इसकी प्रबल संभावना है कि मधेपुरा, सहरसा व सुपौल जिले में भाजपा की उपस्थिति पिछले चुनाव की तुलना में इस बार अधिक हो।