ओखला औद्योगिक क्षेत्र में सार्वजनिक भूमि पर अवैध निर्माण और अतिक्रमण के आरोपों को गंभीरता से लेते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को उपराज्यपाल और दिल्ली पुलिस आयुक्त से जवाब मांग है। न्यायालय ने अतिक्रमण और अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर यह आदेश दिया है।
जस्टिस मनमोहन और नवीन चावला की पीठ ने इस मामले में दक्षिणी दिल्ली नगर निगम और दिल्ली राज्य औद्योगिक और बुनियादी ढांचा विकास निगम लिमिटेड (डीएसआईआईडीसी) को भी नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। पीठ ने स्वत: संज्ञान लेकर शुरू किए गए जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है। पीठ ने सभी पक्षकारों को मामले की अगली सुनवाई 24 मार्च से पहले जवाब देने को कहा है।
न्यायालय की जनहित याचिका समिति ने 7 जुलाई, 2017 को एक व्यक्ति द्वारा भेजे गए पत्र को एक जनहित याचिका में तब्दील करने की सिफारिश की थी। न्यायालय को भेजे पत्र में कहा गया था कि उसने औखला अैद्योगिक क्षेत्र में सार्वजनिक भूमि पर अवैध निर्माण और अतिक्रमण की शिकायत की है। पत्र में यह भी कहा गया है कि न्यायिक आदेशों के बावजूद अधिकारियों द्वारा अवैध निर्माण को नहीं हटाया गया और सार्वजनिक भूमि और सड़क पर अवैध कब्जा करने के कारण क्षेत्र के लोगों को परेशानियों का सामना करना होता है।
इस पत्र अक्तूबर 2017 में उच्च न्यायालय की जनहित याचिका समिति ने दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के मुख्य विधि अधिकारी से रिपोर्ट मांगी थी। पीठ ने कहा कि अक्तूबर 2021 में डीएसआईआईडीसी ने भी एक रिपोर्ट पेश की है। इस रिपोर्ट के अनुसार ओखला औद्योगिक क्षेत्र फेस- 2 को दिल्ली औद्योगिक विकास संचालन और रखरखाव अधिनियम, 2010 के अधिनियमित होने के बाद दक्षिणी दिल्ली नगर निगम से डीएसआईआईडीसी को स्थानांतरित कर दिया गया था। न्यायालय ने कहा है कि 22 अगस्त, 2014 को उपराज्यपाल कर अगुवाई में हुई बैठक में कहा गया था कि संबंधित नगर निगम डीएसआईआईडीसी और दिल्ली पुलिस के साथ संयुक्त अभियान में सार्वजनिक भूमि/इलाके से अतिक्रमण हटाने के लिए आवश्यक कदम उठाएंगे