विधानसभा चुनाव के पहले चार चरणों में बहुजन समाज पार्टी की कड़ी परीक्षा होगी। कारण यह कि पहले चार चरणों की विधानसभा की कुल 231 सीटों में उसके पाले में सिर्फ पांच विधायक ही आ सके थे, उनमें से भी चार उसका पाला छोड़कर जा चुके हैं। ऐसे में बसपा को अपनी स्थिति इन चारों चरणों में न केवल सुधारनी होगी बल्कि इसे बरकरार रखने के लिए भी कड़ी मेहनत करनी होगी।
बसपा की पश्चिमी यूपी में मजबूत पकड़ मानी जाती रही है, लेकिन वर्ष 2017 के चुनाव में बसपा का यह किला भर-भराकर ढह गया। रही सही कसर चुनाव जीत कर आने वाले उसके विधायकों ने पूरी कर दी। धौलाना के बसपा विधायक असल अली व सिधौली के डॉ. हरगोविंद भार्गव ने सपा का दामन थाम लिया। सादाबाद के रामवीर उपाध्याय और पुरवा के अनिल सिंह भाजपाई हो गए। इन चारों चरण के लिए होने वाले मतदान में बसपा का एक मात्र विधायक मांट का बचा है।
साबित करना होगा पुराना दम
पहले चार चरणों में होने वाले मतदान में बसपा पर कड़ी मेहनत की चुनौती है।
पहली चुनौती- उसे साबित करना होगा कि पश्चिमी यूपी में उसका आधार वोट बैंक आज भी उसके साथ मजबूती से खड़ा है।
दूसरी चुनौती- उसे वर्ष 2017 की अपेक्षा इस बार अधिक सीटें जीतनी होगी।
तीसरी चुनौती- उसे धौलाना, पुरवा, सिधौली व सादाबाद जैसी सीटों को जीत कर साबित करना होगा किसी के जाने से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता है। मायावती ने इस सभी सीटों पर जातीय समीकरण के हिसाब से उम्मीदवार उतारे हैं।
वर्ष 2017 में पार्टियों की स्थिति
– पहला चरण: 11 जिलों की 58 सीटे हैं। भाजपा 53, सपा व बसपा दो-दो और आरएलडी एक सीट जीती थी
– दूसरा चरण: नौ जिलों की 55 सीटें हैं। भाजपा 38 व सपा 15 सीटें जीती थीं। बसपा को एक भी सीट नहीं मिली।
– तीसरा चरण: 16 जिलों की 59 सीटें हैं। भाजपा 49, सपा आठ, बसपा व कांग्रेस को एक-एक सीट मिली थी।
– चौथा चरण: नौ जिलों की 59 सीटें हैं। भाजपा 50, सपा चार, बसपा व कांग्रेस को दो-दो व अपना दल को एक सीट मिली थी।