वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने की मांग को लेकर दाखिल याचिकाओं का एक गैर सरकारी संगठन ने मंगलवार को उच्च न्यायालय में विरोध किया। संगठन ने कहा कि पति-पत्नी के बीच यौन संबंध को दुष्कर्म की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। न्यायालय को यह भी बताया गया कि पत्नी की सहमति के बगैर बनाए गए संबंध को यौन शोषण कहा जा सकता है।
जस्टिस राजीव शकधर और सी. हरि. शंकर की पीठ के समक्ष गैर सरकारी संगठन ह्रदय की ओर से अधिवक्ता आर.के. कपूर ने यह दलील की। कपूर ने पीठ को बताया कि पत्नी को अपने पति के खिलाफ अपने अहंकार को संतुष्ट करने के लिए किसी विशेष सजा को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है।
अधिवक्ता ने पीठ को बताया कि वैवाहिक जीवन में यौन दुर्व्यवहार को ‘यौन शोषण’ की श्रेणी में रखा जा सकता है, जिसे घरेलू हिंसा रोकधाम अधिनियम की धारा 3 के तहत ‘क्रूरता’ के अपराध की परिभाषा के तहत शामिल किया गया था। अधिवक्ता कपूर ने जोर देकर कहा कि वैवाहिक दुष्कर्म अपवाद का उद्देश्य ‘विवाह की संस्था की रक्षा करना’ है।
अधिवक्ता ने कहा कि यह अपवाद न तो मनमाना है और न ही संविधान के अनुच्छेद 14, 15 या 21 का उल्लंघन करना है। वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने की मांग का विरोध करते हुए संगठन ने कहा है कि ‘संसद यह नहीं कहती है कि ऐसा कृत्य यौन शोषण (यौन प्रकृति का कोई आचरण) नहीं है, बल्कि विवाह की संस्था को बचाने के लिए इसे एक अलग धरातल पर ले गया है।’
पीठ को यह भी बताया गया कि पत्नी अपने अहंकार को संतुष्ट करने के लिए पति के खिलाफ एक विशेष सजा निर्धारित करने के लिए संसद को मजबूर नहीं कर सकती है। उन्होंने पीठ को बताया कि यही वजह है कि आईपीसी की धारा 375 में अपवाद 2 को बरकरार रखा गया है।
उन्होंने कहा कि संसद ने इस तरह के यौन शोषण के कृत्य को क्रूरता की परिभाषा के दायरे में रखा है और इसे आईपीसी की धारा 375 परिभाषित दुष्कर्म के दायरे से बाहर करके पति को आईपीसी की धारा 376 गंभीरता से छूट दी गई है। वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने की मांग और इसके पक्ष में दिए गए दलीलों का विरोध करते हुए अधिवक्ता कपूर ने पीठ को बताया कि ‘यह नहीं कहा जा सकता है कि संसद ने पति द्वारा यौन शोषण के कृत्य को वैध घोषित कर दिया है।’
अधिवक्ता ने हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि विवाह की संस्था की रक्षा करने का प्रयास किया गया है। कपूर ने पीठ से कहा कि विवाह संस्था न सिर्फ पति-पत्नी के लिए है बल्कि परिवार के लिए भी महत्वपूर्ण है जिसमें बच्चे और माता-पिता भी शामिल हैं।
संगठन ने अपना पक्ष रखते हुए पति-पत्नी के यौन संबंधों की तुलना यौन कर्मियों से किए जाने पर भी अपनी असहमति व्यक्त की। उन्होंने कहा कि वैवाहिक संबंध यानी पति-पत्नी के बीच का संबंध यौन कर्मियों और अजनबी के बीच होने वाले यौन संबंधों से पूरी तरह के अलग है और उसकी वैवाहिक जीवन से तुलना नहीं की जा सकती है।
अधिवक्ता ने पीठ को बताया कि यौन कर्मियों और अजनबी के बीच कोई भावनात्मक संबंध नहीं होता है जबकि पति और पत्नी के बीच का संबंध सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, धार्मिक, आर्थिक जैसे बड़ी संख्या में पारस्परिक अधिकारों और दायित्वों का एक गुच्छा है। उच्च न्यायालय में वैवाहिक दुष्कर्म का अपराध घोषित करने की मांग को लेकर कई याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है। अब इन याचिकाओं पर गुरुवार को सुनवाई होगी।