एक आपराधिक मामले में दिल्ली की अदालत ने कहा है कि महज आरोपपत्र दाखिल करने के लिए आरोपी की गिरफ्तारी न्यायसंगत नहीं है। अगर आरोपी की गिरफ्तारी के बगैर जांच संभव है तो बिना हिरासत में लिए ही आरोपपत्र दायर किया जा सकता है।
कड़कड़डूमा कोर्ट स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश देवेंद्र कुमार की अदालत ने दहेज प्रताड़ना व दहेज हत्या के मामले में सुनवाई करते हुए जांच अधिकारी को कहा कि वह कानूनी प्रक्रिया को लेकर पूरी तरह सजग नजर नहीं आ रहे हैं। यदि जांच अधिकारी सिर्फ आरोपपत्र दाखिल करने के लिए आरोपी को हिरासत में लेते हैं तो यह सीधे तौर पर न्यायिक मापदंडों के खिलाफ है, इसलिए वह भविष्य में अपने कार्यों में सैद्धांतिक सुधार करें।
मृतक की सास ने मांगी थी जमानत: गत वर्ष एक महिला की मौत के बाद ससुरालवालों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना व दहेज हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया था। इस मामले में मृतका की सास ने अदालत में जमानत याचिका दायर की थी। अदालत ने जांच अधिकारी से जवाब मांगा तो उसका कहना था कि इस मामले में वह आरोपपत्र दाखिल करने वाला है, इसलिए आरोपी महिला को हिरासत में लेना जरूरी है। अदालत ने जांच अधिकारी से पूछा कि क्या पिछले नौ महीने में इस मामले में कोई नया तथ्य सामने आया तो जांच अधिकारी के पास कोई जवाब नहीं था। इस पर अदालत ने जांच अधिकारी को कहा कि ऐसा कोई कानूनी नियम नहीं है।
यह घटना अप्रैल 2021 में घटित हुई थी। गिरफ्तारी से बचने के लिए इस परिवार ने वर्ष 2021 में ही अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी, जिसे तभी मंजूर करते हुए पुलिस को कहा गया था कि आरोपियों की गिरफ्तारी से पांच दिन पहले प्रत्येक आरोपी को नोटिस दिया जाए।
सहआरोपी को पहले ही मिल चुकी है जमानत
मुकदमे के एक आरोपी को पहले ही नियमित जमानत मिल चुकी है, जबकि इस आरोपी पर भी मृतका के परिजनों ने वही आरोप लगाए थे जो उसकी सास पर लगाए गए थे। अदालत ने कहा कि समानता के आधार पर आरोपी महिला जमानत की हकदार है। अदालत ने आरोपी सास को 25 हजार के निजी मुचलके और इतने ही मूल्य के जमानती के आधार पर जमानत दी है।