सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट की ओर से एक केस में सुनाए गए फैसले की भाषा पर नाराजगी जताई है। दो न्यायाधीशों की पीठ की अध्यक्षता करते हुए जस्टिस के एम जोसेफ ने अपीलकर्ता के वकील निधेश गुप्ता से पूछा कि हाईकोर्ट क्या कहना चाहता है। जस्टिस ने कहा कि ‘हम इसे क्या समझें? क्या यह लैटिन है।’ जस्टिस जोसेफ ने गुप्ता के जवाब पर हैरानी जताई, जब उन्होंने कहा कि वह भी इसे समझ नहीं पर रहे हैं।
बेंच में शामिल जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने कहा कि उसे फिर से लिखने के लिए फैसला हाईकोर्ट को वापस करना पड़ सकता है। सीनियर वकील ने तब बेंच को बताया कि यह संपत्ति पर विवाद था और वह ट्रायल कोर्ट के फैसले से यह बता सकते हैं, जो बहुत साफ था। इस पर अदालत ने दूसरे पक्ष के वकील के साथ बैठने और यह देखने के लिए कहा कि क्या मामले को दो सप्ताह में बातचीत से सुलझाया जा सकता है।
फैसले की लिखावट को लेकर यह पहला मामला नहीं
यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस तरह फैसलों पर निराशा जताई हो। मार्च 2021 में जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की बेंच ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले से अपनी झुंझलाहट जाहिर की और कहा कि हम अपनी बुद्धि के अंत में हैं। ऐसा बार-बार हो रहा है।
‘मुझे अपनी ही समझ पर शक होने लगा’
27 नवंबर, 2020 में हाईकोर्ट के ऐसे ही फैसले के खिलाफ भारतीय स्टेट बैंक की ओर से याचिका दायर की गई थी। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने हिंदी में पूछा था, “यह क्या फैसला लिखा गया है? मैं कुछ समझ नहीं पाया। लंबे-लंबे वाक्य हैं। फिर, कहीं एक अजीब अल्पविराम दिखाई दे रहा है। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। मुझे अपनी ही समझ पर शक होने लगा है। शायद मुझे टाइगर बाम का इस्तेमाल करना था।”