महामारी के बाद से अधिकांश लोग तनाव, चिंता, बैचेनी का अनुभव करने लगे हैं। पॉल मैकेना ने ऐसे तीन चरण बताए हैं जो मन-मस्तिष्क में नई ऊर्जा भरेंगे और आपको तनाव से राहत दिलाएंगे। पॉल मैकेना ब्रिटेन के व्यवहार वैज्ञानिक, टीवी और रेडियो ब्रॉडकास्टर हैं। उन्होंने कई सेल्फ हेल्प किताबें लिखी हैं।
लगभग दो वर्षों के मुश्किल हालातों के कारण हमारे मस्तिष्क का एक हिस्सा, जिसे एमिग्डाला कहा जाता है वह निरंतर उत्तेजना महसूस कर रहा है। दरअसल इस हिस्से में हम खतरे और भय की भावनाओं को संसाधित करते हैं।
डर और चिंता का आलम यह है कि कोविड से अपनी और अपनों की जीवन सुरक्षा ही जिंदगी की बैकग्राउंड थीम बन गई है। यह परवाह अच्छी बात है, लेकिन इस डर के साथ जीवन बहुत उबाऊ हो चला है।
पॉल मैकेना का कहना है कि इस मुश्किल वक्त में एमिग्डाला ऐसा बटन बन गया है, जो स्विच ऑफ नहीं हो रहा, लिहाजा जीवन में बेचैनी और चिंताएं भी बढ़ रही हैं। हालांकि मैं किसी की जिंदगी से तनाव को हटाने का दावा नहीं करता। लेकिन कुछ ऐसी तरकीबें साझा कर रहा हूं, जो आपके भावनात्मक संतुलन को व्यवस्थित करेगी और नकारात्मक भावनाएं कम होंगी।
सोचने का तरीका बदलेंः
हम क्या सोच रहे हैं यह महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि हम किस तरीके से सोच रहे हैं यह महत्वपूर्ण है। सबसे पहले खुद को आरामदायर स्थिति में महसूस करें और उन दिनों को याद करनें जब आप अच्छा महसूस करते थे। पुरानी यादों को ऐसा याद करें, जैसे आप उन तक दोबारा पहुंच गए हों। आपने जो देखा उसे वास्तव में देखें और जो सुन रहे हैं उसे वास्तव में सुनें और महसूस करें। नकारात्मकता को दूर करके सकारात्मकता की ओर बढ़ा जा सकता है। यह महसूस करें कि जब आप तनाव में होते हैं तो दुनिया कैसी नजर आती है और खुश रहने पर दुनिया कैसी नजर आती है। दोनों में अंतर करें और खुद को सकारात्मक बनाने की कोशिश करें।
भावनाओं को हावी न होने दें
हमारी सभी भावनाएं हमारी भावनात्मक बुद्धिमत्ता का हिस्सा हैं। उनका उद्देश्य हमें यह बताना है कि हमें किसी चीज पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
कुछ भावनाएं असहज भी हो सकती हैं। जब किसी चीज से हम खुश होते हैं तो अच्छा महसूस होता है। इसी तरह कुछ अन्य भावनाएं असहज महसूस कराती हैं। डर का भाव यह बताता है कि कुछ गलत हो सकता है, इसलिए तैयार रहें। गुस्सा हमें किसी स्थिति से दूर रहने का संकेत देता है।
मनमुताबिक परिणाम न मिलने पर हताशा होती है। समय-समय पर सभी भावनाएं महसूस होती हैं, लेकिन इन भावनाओं को खुद पर हावी न होने दें। गुस्सा, डर, हताशा जैसे नकारात्मक भाव आने पर इनकी उल्टी भावनाओं जैसे कि शांति, प्रेम, सहजता की कल्पना करें। मन को शांत रखने का प्रयास करें।
मन की आवाज से दोस्तीः
अपनी आंतरिक आवाज का पता लगाएं। खुद से पूछें कि ‘मेरी आंतरिक आवाज क्या है?’ इसको महसूस करें और देखें कि यह पूरी तरह आत्मविश्वास से भरी हुई है। यह सुनने में आसान और स्पष्ट है? यह कमजोर है या मजबूत? इसके बाद बार-बार खुद से कहें ‘सबकुछ ठीक है, अच्छा है और सुंदर है।’ इसके बाद आप काफी बेहतर महसूस करेंगे। सकारात्मक वाक्यों को जीवन में शामिल करें।