हाल ही में तिब्बती निर्वासित संसद ने एक भोज का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में कई भारतीय नेता भी पहुंचे। चीन इस बात से तिलमिला गया है। दिल्ली स्थित चीनी एंबेसी ने भारतीय नेताओं के इस कार्यक्रम में शामिल होने पर चिंता जताई है और कहा है कि तिब्बत की आजादी चाहने वालों को किसी तरह की कोई मदद न की जाए। चीनी डिप्लोमैट ने इन नेताओं को एक चिट्ठी भी भेजी है और कहा है कि इस तरह के कार्यक्रम से दूर रहा जाए। चीनी डिप्लोमैट द्वारा भेजे गए इस चिट्ठी को गैर-राजनीतिक कदम के तौर पर देखा जा रहा है।
भड़के भारतीय नेता
ऑल-पार्टी इंडियन पार्लियामेंट्री फोरम फॉर तिब्बत के इस कार्यक्रम में कम से कम 6 सांसदों ने भाग लिया था। इसमें केंद्रीय राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर, बीजेपी नेता मेनका गांधी और के सी राममूर्ति, कांग्रेस सांसद जयराम रमेश और मनीष तिवारी और बीजद सांसद सुजीत कुमार शामिल हुए थे।
चिट्ठी पर बीजेडी सांसद ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि चीनी एंबेसी में पॉलिटिकल काउंसलर कौन हैं जो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के संसद सदस्य को चिट्ठी लिखते हैं? भारतीय सांसदों को चिट्ठी लिखने की आपकी हिम्मत कैसे हुई? यदि कुछ भी हो तो आप आधिकारिक चैनल के जरिए अपना विरोध दर्ज करा सकते हैं। मुझे लगता है कि विदेश मंत्रालय को एक स्टैंड लेना चाहिए।
चिट्ठी में क्या था?
पॉलिटिकल काउंसलर झोउ योंगशेंग ने लिखा है कि आपने तथाकथित तिब्बत के लिए अखिल भारतीय संसदीय मंच द्वारा एक कार्यक्रम में भाग लिया है और तथाकथित निर्वासन में तिब्बती संसद के सदस्यों के साथ बातचीत की है। मैं उस पर अपनी चिंता व्यक्त करना चाहता हूं।
उन्होंने कहा है कि जैसा कि सभी जानते हैं कि निर्वासन में तिब्बती सरकार एक बाहरी अलगाववादी राजनीतिक समूह है और यह चीनी संविधान और कानूनों का उल्लंघन करने वाला एक अवैध संगठन है। दुनिया के किसी देश ने इसे मान्यता नहीं दी है। तिब्बत ऐतिहासिक काल से चीन का अविभाज्य अंग रहा है। ऐसे में हम तिब्बत से संबंधित और चीन के आंतरिक मामले में किसी भी विदेशी हस्तक्षेप की इजाजत नहीं देते हैं।
चिट्ठी में कहा गया है कि भारत सरकार तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र को चीन का हिस्सा मानती है और तिब्बतियों को चीन विरोधी राजनीतिक गतिविधियों को करने की इजाजत नहीं देता। चिट्ठी में लिखा है कि आप एक सीनियर नेता हैं जो चीन-भारत संबंधों को अच्छी तरह से जानते हैं। ऐसे में आप इस मसले की संवेदनशीलता को समझ सकते हैं और तिब्बत की आजादी चाहने वालों को समर्थन देने से परहेज कर सकते हैं।
सुजीत कुमार ने चीन को लताड़ा
बीजेडी नेता सुजीत ने कहा है कि मैं व्यक्तिगत तौर पर तिब्बत को चीन का हिस्सा नहीं मानता। यह अलग बात है कि भारत की आधिकारिक नीति अलग है। तिब्बत पर यह संसदीय मंच तिब्बती सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं के समर्थन के लिए है और भारत के लोगों और निर्वासित तिब्बती सरकार के बीच है।
सुजीत ने आगे कहा है कि संसदीय मंच का लक्ष्य तिब्बत की आजादी या किसी विवादास्पद चीज की वकालत करना नहीं है। यह मुख्य रूप से साझा इतिहास, साझा सभ्यता और संबंधों के कारण निर्वासित सरकार और भारत के लोगों के बीच संबंधों को लेकर है।
भारत की तिब्बत नीति
भारत की तिब्बत के निर्वासित नेताओं के प्रति लगातार सहायक की नीति रही है। करीब साठ साल पहले 80 हजार से अधिक तिब्बती अपने आध्यात्मिक नेता दलाई लामा के साथ कम्युनिस्ट शासन के खिलाफ एक असफल विद्रोह के बाद ल्हासा छोड़कर भारत पहुंचे थे। हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में तिब्बती निर्वासन प्रशासन स्थित है जहां आध्यात्मिक नेता भी रहते हैं। करीब 1.4 लाख तिब्बती अब निर्वासन में रह रहे हैं, जिनमें से एक लाख से अधिक भारत के विभिन्न भागों में हैं।