हाईटेक चश्मे से ग्लूकोमा को मात देने की तैयारी पूरी हो चुकी है। शोधकर्ताओं ने एक ऐसा चश्मा बनाया है, जो ग्लूकोमा जैसी बीमारी को विकसित होने से रोक सकता है। इसके लिए रोजाना चश्मे को दिन में आधे घंटे के लिए पहनना होगा, तभी जाकर इसका फायदा होगा।
शोधकर्ताओं ने बताया कि चश्मे को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यह आंख तक इलेक्ट्रिसिटी आसानी से पहुंचा दे। यह ऑप्टिक तंत्रिका को खुद को ठीक करने के लिए प्रेरित करता है। उन्होंने बताया कि जैसा ही इस तरह की प्रक्रिया शुरू होती है वैसे ही बीमारी में सुधार नजर आने लगता है। इस बीमारी से ब्रिटेन में सबसे ज्यादा लोग ग्रसित हैं। उन्होंने बताया कि ग्लूकोमा एक सामान्य आंख की स्थिति है, जिसमें ऑप्टिक तंत्रिका को नुकसान होता है।
दक्षिण कोरिया ने बनाया उपकरण
इस उपकरण को दक्षिण कोरिया स्थित नु आइने ने विकसित किया है। यह बिल्कुल चश्मा की तरह दिखता है। इसके जरिये तंत्रिका ऊतक पुनर्जनन को बढ़ावा दिया जाता है। इसके साथ ही छोटे इलेक्ट्रोड के माध्यम से आंखों के आसपास की त्वचा में विद्युत तरंगों को पहुंचाया जाता है, जिससे ऑप्टिक तंत्रिका में वृद्धि को गति मिलती है और यह शरीर के घाव भरने वाले तंत्र की नकल कर बीमारी को ठीक करता है।
जांच में 22 रोगी को शामिल किया जाएगा
दक्षिण कोरिया के कोंकुक विश्वविद्यालय में 22 रोगियों का परीक्षण किया जाएगा। उन्हें 16 हफ्ते तक प्रतिदिन 30 मिनट के लिए चश्मे पहनने होंगे। साथ ही डॉक्टर आंखों के दबाव और तंत्रिका तंतुओं की मोटाई में किसी भी तरह के बदलाव की निगरानी करेंगे।
क्या है ग्लूकोमा
ग्लूकोमा को आम बोलचाल की भाषा में काला मोतिया कहते हैं। आंख के अंदर अंगों के पोषण के लिए एक तरल पदार्थ उत्पन्न होता है। पोषक के बाद यह तरल पदार्थ आंख के महीन छिद्र (फिल्टर) से बाहर निकलते हैं। उम्र के साथ छिद्र तंग होने शुरू हो जाते हैं। इससे तरल पदार्थ के निकलने की प्रक्रिया थोड़ी बाधित होती है। इससे आंख का प्रेशर बढ़ने लगता है। आंख का बढ़ा प्रेशर ऑप्टिक नर्व (आंखों से दिमाग को सिग्नल भेजने वाली नर्व) को डैमेज करता है। आमतौर पर ऐसा आंखों पर ज्यादा जोर पड़ने से होता है। दरअसल, ऑप्टिक नर्व काफी सेंसिटिव हैं, इसलिए जरा भी ज्यादा प्रेशर पड़ने पर यह ब्लॉक हो जाती है। इससे दिखना बंद हो जाता है।