दिल्ली उच्च न्यायालय ने लड़की के कथित अपहरण को लेकर एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया है। अदालत का मानना है कि इस मामले में कोई प्रलोभन नहीं दिया गया और दोनों खुशहाल वैवाहिक जीवन जी रहे हैं। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि 17 साल 10 महीने और 22 दिन की आयु में लापता हुई लड़की विवाह के समय 17 साल 11 महीने और 12 दिन की हो चुकी थी और वह यह जानने में सक्षम थी कि उसके लिए क्या सही और क्या गलत है।
एक व्यक्ति ने अपने खिलाफ अपहरण के लिए दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने के लिये उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की थी, जिसपर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश ने इस बात पर भी विचार किया कि लड़की ने आरोपी के साथ जाने के लिए जबरदस्ती की थी और फिर उससे शादी करने का ”चेतनापूर्ण निर्णय” लिया था।
अदालत ने 21 दिसंबर के अपने आदेश में कहा, ”के (लड़की) बालिग होने के कगार पर थी और ऐसा नहीं कहा जा सकता कि वह यह निर्णय लेने में सक्षम नहीं थी कि उसके लिये क्या सही और क्या गलत है। उसने याचिकाकर्ता के साथ विवाह करने की इच्छा प्रकट की और याचिकाकर्ता के साथ जाने की जिद की तथा उसके साथ शादी कर ली। लिहाजा, इस मामले में याचिकाकर्ता द्वारा प्रलोभन दिये जाने जैसा कुछ नहीं है।”
अदालत ने कहा कि लड़की एक महानगरीय शहर में रहती थी, 11 वीं कक्षा तक पढ़ाई की और मजिस्ट्रेट के सामने एक स्पष्ट बयान दिया था कि वह याचिकाकर्ता से प्रेम करती है और उसके माता-पिता उनके संबंध पर आपत्ति जताते हैं।
साथ ही आदेश में कहा गया है, ”इस न्यायालय की राय है कि विवाह के समय 17 वर्ष 11 महीने और 12 दिन की हो चुकी लड़की एक महीने से भी कम समय बाद व्यस्क होने वाली थी। उसने याचिकाकर्ता से शादी करने का एक चेतनापूर्ण निर्णय लिया। वह याचिकाकर्ता के साथ गई और उसे राजी किया और फिर उसके साथ जाने की जबरदस्ती की।
अदालत ने कहा कि बालिग होने पर, लड़की ने थाने जाकर घटना के बारे में बताया। लिहाजा न्याय के लक्ष्य को सुरक्षित करने के लिए प्राथमिकी को रद्द करना उचित है। अदालत ने पश्चिम विहार ईस्ट थाने में 07.02.2021 को भारतीय दंड संहिता की धारा 363 के तहत दर्ज प्राथमिकी संख्या 38/2021 को रद्द कर दिया।