दिल्ली हाईकोर्ट ने अपनी सौतेली बेटी से कथित रूप से बलात्कार करने के आरोप में एक व्यक्ति की दोषसिद्धि को 15 साल बाद यह कहते हुए रद्द कर दिया कि जब लड़की की कहानी असंभव और असंगत पाई जाती है, तो मामला खारिज किए जाने योग्य है।
जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने कहा कि अपीलकर्ता दोषी संदेह के लाभ का हकदार है क्योंकि लड़की का बयान विश्वसनीय नहीं है। व्यक्ति ने चार साल से अधिक समय हिरासत में बिताए और निचली अदालत ने आठ साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई।
जस्टिस सिंह की राय है कि लड़की की मेडिकल रिपोर्ट में बलात्कार किए जाने को लेकर कोई ठोस राय नहीं दी गई थी और छानबीन, जांच और सुनवाई के अलग-अलग चरणों में दर्ज किए गए उसके बयानों में विरोधाभास था। अदालत ने कहा कि फॉरेंसिक रिपोर्ट में भी कहा गया है कि उसके कपड़ों पर अपीलकर्ता का वीर्य नहीं पाया गया है।
हाईकोर्ट ने 23 दिसंबर को अपने आदेश में कहा कि अदालत का विचार है कि दिए गए तथ्यों और परिस्थितियों से यह स्पष्ट हो जाता है कि यदि लड़की के साक्ष्य को रिकॉर्ड पर अन्य सबूतों के साथ परिस्थितियों की समग्रता में पढ़ा और माना जाता है, जिसमें अपराध करने का आरोप लगाया गया है, उसका बयान विश्वनीय नहीं लगता है। अभियोजन पक्ष ने अपराध की वास्तविक उत्पत्ति का खुलासा नहीं किया है। ऐसी वास्तविक स्थिति में, अपीलकर्ता संदेह के लाभ का हकदार हो जाता है।
कोर्ट ने कहा कि दोषसिद्धि लड़की की एकमात्र गवाही पर आधारित हो सकती है, बशर्ते यह उसकी गवाही का आश्वासन देती हो। हालांकि, अगर अदालत के पास अभियोजन पक्ष के बयान को उसके अंकित मूल्य पर स्वीकार नहीं करने का कारण है, तो वह पुष्टि की तलाश कर सकता है। यदि साक्ष्य को उसकी समग्रता में पढ़ा जाता है और लड़की द्वारा पेश की गई कहानी को असंभव पाया जाता है, तो अभियोक्ता का मामला खारिज होने के लिए उत्तरदायी हो जाता है।