दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि कमाने में सक्षम होना अलग रह रही पत्नी को अंतरिम गुजारा भत्ता देने से मना करने का आधार नहीं हो सकता है क्योंकि कई बार पत्नियां केवल परिवार की खातिर अपने करियर की कुर्बानी देती हैं। जस्टिस सुब्रमण्यन प्रसाद ने याचिकाकर्ता की पत्नी को 33,000 रुपये अंतरिम गुजारा भत्ता देने के निचली अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका का निस्तारण करते हुए यह बात कही।
जस्टिस प्रसाद ने ने याचिकाकर्ता की यह दलील खारिज कर दी कि उसकी पत्नी जीवन यापन करने में सक्षम है क्योंकि वह पूर्व में टीचर रह चुकी है। न्यायाधीश ने कहा कि तथ्य यह है कि प्रतिवादी कमाने में सक्षम है, यहां प्रतिवादी को अंतरिम भरण-पोषण से इनकार करने का कोई आधार नहीं है। कई बार पत्नियां सिर्फ परिवार के लिए अपना करियर कुर्बान कर देती हैं।
अदालत ने याचिकाकर्ता की यह दलील भी खारिज कर दी कि सेना का अधिकारी होने के नाते गुजारा भत्ता दावा पर फैसला सैन्य अधिकरण द्वारा आर्मी ऑर्डर के अनुसार तय करना होगा।
अदालत ने अपने दिनांक 21 दिसंबर के आदेश में कहा कि यह नहीं कहा जा सकता है कि सेना का आदेश सीआरपीसी की धारा 125 के प्रावधानों से आगे निकल जाएगा और सेना के जवान केवल सेना के आदेश के तहत आते हैं और धारा 125 सीआरपीसी सेना के कर्मियों पर लागू नहीं होगी।
मामले में अंतरिम गुजारा भत्ता देने के निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए अदालत ने हालांकि पत्नी को दी गई राशि को इस तथ्य के कारण कम कर दिया कि बच्चे अब उसके साथ नहीं रह रहे थे।
अदालत ने आदेश दिया कि पुनरीक्षण याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। याचिकाकर्ता को प्रतिवादी को अंतरिम गुजारा भत्ता के रूप में 01.01.2017 से प्रति माह 14,615/- रुपये की राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया जाता है। अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री से पता चलता है कि बच्चे 2015 से याचिकाकर्ता के साथ हैं और इसलिए प्रतिवादी दो शेयरों का हकदार नहीं है, इसलिए प्रतिवादी केवल एक शेयर का हकदार है।
याचिकाकर्ता ने इस आधार पर अंतरिम भरण पोषण के अनुदान का विरोध किया कि प्रतिवादी को वह लाभ प्राप्त करने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया था क्योंकि वह एक व्यभिचारी रिश्ते (Adulterous Relationship) में थी और अपनी सेना के वरिष्ठ के साथ व्यभिचार में रह रही थी।
प्रतिवादी ने तर्क दिया कि निचली अदालत के 35,300 रुपये के भरण-पोषण के आदेश में कोई खामी नहीं थी और दावा किया कि याचिकाकर्ता अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता, भले ही उनका विवाह टूट गया हो।
महिला ने कहा कि याचिकाकर्ता एक लापरवाह जीवनसाथी था जिसने शादी के दौरान उसकी और बच्चों की उपेक्षा की और जब उसने अलग रहने का फैसला किया, तो उसने उसे भरण-पोषण का भुगतान करने से बचने के लिए व्यभिचार का झूठा आरोप लगाया।
अदालत ने कहा कि व्यभिचार के मुद्दे पर दोनों पक्षों द्वारा सबूत पेश किए जाने के बाद ही फैसला किया जा सकता है और अंतरिम गुजारा भत्ता तय करते समय वह इसमें जाने के लिए इच्छुक नहीं है।