उच्च न्यायालय ने सोमवार को दिल्ली सरकार को दक्षिण दिल्ली की डिफेंस कॉलोनी में सार्वजनिक भूमि पर अवैध रूप से निर्मित मंदिर को हटाने का आदेश दिया है। न्यायालय ने सरकार को इसके लिए 10 दिन का समय दिया है। इसके साथ ही न्यायालय ने संबंधित थाना प्रभारी को मंदिर में रखी मूर्तियों को पास के मंदिर में रखने का निर्देश दिया है ताकि इन मूर्तियों की पवित्रता बनी रहे और श्रद्धालुओं की भावनाओं का सम्मान किया जाए।
जस्टिस रेखा पल्ली ने अपने आदेश में कहा है कि पेश रिपोर्ट और तथ्यों से साफ है कि सार्वजनिक जमीन पर अवैध तरीके से बनाए गए मंदिर में कोई धार्मिक गतिविधि नहीं हो रही है, ऐसे में उसे वहां से हटाया जाए। उन्होंने कहा है कि जब एक बार सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही निर्देश दे दिया था कि मंदिर या गुरुद्वारे के नाम पर किसी भी अनधिकृत निर्माण की अनुमति नहीं दी जाएगी, तो अब कोई सवाल ही नहीं बचता कि अतिक्रमण को तेजी से क्यों नहीं हटाया जाए ताकि इसका दुरुपयोग न हो।
जस्टिस पल्ली ने सरकार को डिफेंस कॉलोनी इलाके में एक निजी संपत्ति के सामने किसी व्यक्ति द्वारा अवैध रूप से बनाए गए मंदिर को 10 दिन के भीतर हटाने का आदेश दिया है। साथ ही दिल्ली पुलिस को मंदिर हटाने में सरकार को सहायता प्रदान करने का आदेश दिया है। उच्च न्यायालय ने कहा है कि सक्षम प्राधिकार पिछले कई वर्षों से शहर की समस्या को लेकर बेपरावाह रहे। जब सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय ने अतिक्रमण पाया है तो धार्मिक समिति का सवाल कहां है।
न्यायालय ने कहा कि उपराज्यपाल ने नोट कहां लिखा है कि अदालत अतिक्रमण और अवैध ढांचा गिराने का आदेश नहीं दे सकती है। इस पर दिल्ली सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता ने कहा कि अदालत तोड़फोड़ का आदेश दे सकती है लेकिन यदि एजेंसियों को फैसला लेना है तो उन्हें पहले धार्मिक समिति से अनुमति लेनी होगी।
सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार और पुलिस की ओर से अधिवक्ता अनुपम श्रीवास्तव ने न्यायालय को बताया कि अवैध ढांचों को गिराने की सिफारिश के लिए उपराज्यपाल की अध्यक्षता वाली धार्मिक समिति को फिर से एक प्रस्ताव भेजा जाएगा ताकि इस ढांचे को गिराने के लिए मंजूरी ली जा सके।
न्यायालय ने उनकी दलील को खारिज करते हुए कहा कि 18 फरवरी 1991 को जारी सर्कुलर सिर्फ यह सुनिश्चित करने के लिए है कि सार्वजनिक भूमि पर धार्मिक ढांचों को गिराने के आदेश सीधे उपराज्यपाल के पास नहीं हैं। हालांकि उक्त आदेश में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि कोई भी तोड़फोड़ नहीं होनी चाहिए, भले ही वह एक सक्षम अदालत द्वारा पारित आदेश के खिलाफ हो। साथ ही कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने 2009 में अपने फैसले में कहा था कि धार्मिक ढांचों के नाम पर किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश द्वारा अनधिकृत निर्माण की अनुमति नहीं दी जाएगी।
न्यायालय ने कहा है कि उक्त मंदिर में किसी तरह की कोई धार्मिक गतिविधि नहीं हो रही है। कोई पूजा नहीं कर रहा है। ऐसे में इस मामले को धार्मिक समिति के पास नहीं भेजा जा सकता है। इसके बाद न्यायालय ने विरहत सैनी की ओर से दाखिल याचिका को स्वीकार करते हुए अवैध रूप से बनाए गए मंदिर को गिराने का आदेश दिया। याचिकाकर्ता ने न्यायालय को बताया था कि कोरोना महामारी के दौरान सार्वजनिक भूमि पर उनकी निजी संपत्ति के सामने मौजूद फुटपाथ पर अवैध रूप से मंदिर का निर्माण किया गया।