लिवर के दुश्मन हेपेटाइटिस बी और सी ने खतरे की घंटी बजा दी है। तीन सालों में हेपेटाइटिस बी और सी का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। बीमारी की बढ़ रही रफ्तार से विशेषज्ञ डॉक्टर भी चिंतित हैं। डॉक्टरों का कहना है कि हेपेटाइटिस बी, सी की रोकथाम के उपाय शुरू नहीं हुए तो यह एक चुनौती बन जाएगी। अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बी और सी की सीरो पॉजिटिविटी दर 3 फीसदी तक पहुंचने लगी है।
यह खुलासा जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के ट्रांसफ्यून मेडिसिन विभाग की रिसर्च में हुआ है। रिसर्च स्टडी में 24,491 ब्लड डोनर्स को शामिल किया गया। जुलाई 2017 से जून 2020 तक चली स्टडी के रिजल्ट कोरोना काल के चलते सामने नहीं आ सके थे। अब स्टडी में शामिल ब्लड डोनर्स के एलाइजा टेस्ट की रिपोर्ट सामने आई। रिपोर्ट के मुताबिक हेपेटाइटिस उत्तर भारत में तेजी से फैल रही है। स्टडी रिजल्ट में साफ किया गया है कि 13.89 फीसदी ने स्वैच्छिक रक्तदान किया।
इस तरह के रक्तदान में सबसे कम पॉजिटिविटी केस सामने आए हैं जबकि ब्लड बैंक से खून के बदले खून लेने के मामलों में हेपेटाइटिस बी, सी के पॉजिटिव केस सबसे ज्यादा मिले हैं। पॉजिटिव केस पहले साल में 1.3, दूसरे में 2.9 फीसदी व तीसरे साल में 3 फीसदी से ज्यादा पहुंच गया। हेपेटाइटिस बी का संक्रमण सर्वाधिक पाया गया है। इसने सी का रिकार्ड तोड़ दिया है।
जागरूकता प्रोग्राम चलाने का सुझाव
स्टडी में सामने आया है कि हेपेटाइटिस सी लिवर कमजोर होने की वजह से होता है। लिवर को कमजोर या खराब करने के पीछे अत्यधिक तेल मसाले वाले भोजन का सेवन पाया गया है। ऐसा भोजन जिसे पचाने में लिवर को अधिक मेहनत करनी पड़ती है, लिवर पर दबाव पैदा करता है। इस स्थिति में भोजन पेट में ही सड़ सकता है जिसके कीटाणु बीमारी पैदा करते हैं। किसी भी तरह का नशा या मांसाहार का सेवन लिवर के लिए हानिकारक हो सकता है। ऐसा करने से लिवर में सूजन आ सकती है। इसलिए हेपेटाइटिस के लिए सीएमई और जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है।
हेपेटाइटिस बी, सी विषाणु से लिवर फेल हो जाता है। यह रोग इसलिए भी खतरनाक है, क्योंकि आधे से ज्यादा संक्रमित लोगों को खुद के संक्रमित होने का पता ही नहीं चलता है। रिसर्च स्टडी को जर्नल ऑफ एविडेंस बेस्ड मेडिसन एंड हेल्थ केयर ने प्रकाशित किया है।
-प्रो. लुबना खान, हेड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज