कुछ साल पहले भाजपा ने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया था, लेकिन अब कुछ विपक्षी पार्टियां भी इसी राह पर बढ़ती दिख रही हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या टीएमसी कांग्रेस मुक्त विपक्ष की रणनीति तैयार कर रही है? हाल के घटनाक्रम को देखें तो ममता दीदी की सियासी चाल कुछ ऐसी ही नजर आती है। एक तरफ संसद के शीतकालीन सत्र से पहले कांग्रेस की ओर से बुलाई गई किसी भी विपक्षी दलों की मीटिंग में टीएमसी के सांसद शामिल नहीं हुए हैं तो वहीं दूसरी तरफ ममता बनर्जी महाराष्ट्र के दौरे पर हैं। यहां वह कांग्रेस को छोड़कर उसके साथ राज्य की सरकार चला रहे एनसीपी और शिवसेना के नेताओं से मुलाकात कर रही हैं।
यही नहीं 12 राज्यसभा सांसदों के सदन से निलंबन के खिलाफ कांग्रेस की ओर से जारी किए गए लेटर में भी ममता बनर्जी के हस्ताक्षर नहीं हैं। यही नहीं कहा यह भी जा रहा है कि टीएमसी ममता बनर्जी को 2024 में विपक्ष के चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट करने की तैयारी में हैं। उसे यह तो पता ही है कि कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी की कीमत पर ममता बनर्जी को नेता मानने को तैयार नहीं होगी। शायद इसी के चलते ममता बनर्जी और टीएमसी लगातार गैर-कांग्रेसी विपक्षी दलों से मिल रहे हैं और उन्हें साथ लेकर चलने की कोशिश में हैं। एक तरफ कांग्रेस समेत कई दलों के नेताओं को टीएमसी अपने पाले में ला रही है तो वहीं ममता बनर्जी देश के कई राज्यों के दौरे कर रही हैं।
आप भी दिख रही है टीएमसी के साथ, मीटिंग से थी दूर
यही नहीं इस मुहिम में उनको आम आदमी पार्टी का साथ मिलता दिख रहा है, जिसके मुखिया अरविंद केजरीवाल से उनकी काफी अच्छी दोस्ती है। आम आदमी पार्टी भी शीत सत्र से पहले हुई विपक्ष की मीटिंग में शामिल नहीं हुई थी। भले ही टीएमसी का अजेंडा काफी हद तक क्लियर दिख रहा है, लेकिन मुश्किल कांग्रेस के खेमे में है। कुछ कांग्रेस नेता ममता बनर्जी पर खुलकर हमला करने के पक्ष में नहीं हैं और उन्हें साधने की कोशिश करना चाहते हैं। लेकिन अधीर रंजन चौधरी और केसी वेणुगोपाल जैसे नेताओं का मानना है कि ममता बनर्जी पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
कांग्रेसी ममता से नाराज, फिर जवाब देने पर असमंजस
यही नहीं कांग्रेस नेताओं को पार्टी में लेने और ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक की ओर से खुले तौर पर राहुल गांधी की निंदा किए जाने से बड़ी संख्या में कांग्रेसी ममता बनर्जी से नाराज हैं। फिलहाल कांग्रेस यह भी तय नहीं कर पा रही है कि वह किसके साथ जाए और किसे छोड़ दे। उत्तर प्रदेश और बिहार में भी उसकी स्थिति कांग्रेस मुक्त विपक्ष जैसी ही दिख रही है। यूपी चुनाव में उससे समाजवादी पार्टी ने दोस्ती से इनकार कर दिया है और बसपा ने भी दूरी बना रखी है। ऐसे में कांग्रेस को एक बार फिर से अस्तित्व की लड़ाई लड़ना पड़ रहा है। प्रियंका गांधी की तमाम कोशिशों के बाद भी कांग्रेस में जान पड़ती नहीं दिख रही है। इसके अलावा बिहार में भी आरजेडी उसे बहुत ज्यादा भाव नहीं दे रही है।