नाबालिग के अपहरण और दुष्कर्म के मामले में दो अलग चार्जशीट दाखिल किए जाने पर अदालत ने दिल्ली पुलिस को कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने कहा कि दुष्कर्म जैसे संगीन वारदात की पुलिस अधिकारी द्वारा की गई जांच मजाक के अलावा और कुछ नहीं है। अदालत ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि मामले में पुलिस अधिकारी का रवैया दिल्ली पुलिस के लोगो (शांति, सेवा, न्याय) पर एक बड़ा तमाचा है।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश गौरव राव ने पॉक्सो कानून के तहत दर्ज इस मामले में यह टिप्पणी तब की जब उन्हें बताया गया कि पुलिस अधिकारी ने दो अलग-अलग चार्जशीट दाखिल किए हैं। पीड़िता के वकील ने बताया कि पुलिस द्वारा अदालत में दाखिल चार्जशीट और उन्हें ( पीड़िता के वकील) मुहैया कराई गई इसकी कॉपी एक समान नहीं है। पुलिस ने चार्जशीट की कॉपी अदालत में दाखिल करने के साथ ही आरोपी को दी थी, जबकि, इसकी दूसरी कॉपी पीड़िता के वकील और लोक अभियोजक को मुहैया कराई थी। आरोप है कि एक कॉपी से महत्वपूर्ण तथ्यों को हटा दिया दिया गया।
पुलिस ने शक्ति का दुरुपयोग किया : अदालत ने कहा कि दिल्ली पुलिस शांति, सेवा, न्याय का लोगो प्रचारित करती रही है, लेकिन पुलिस अधिकारी की सनक और कल्पना के अनुसार इसे विकृत किया गया है। न्यायाधीश ने कहा है कि यदि यह सब ऐसा ही चलता रहा और ऐसे अधिकारी से सख्ती से नहीं निपटा गया तो जनता का पुलिस प्रशासन से विश्वास खत्म हो जाएगा। अदालत ने कहा है कि पुलिस अधिकारियों ने न सिर्फ न्यायिक व्यवस्था का मजाक उड़ाया है, बल्कि अपनी शक्ति का दुरुपयोग भी किया है।
यह है मामला : यह मामला 14 साल की लड़की के अपहरण और दुष्कर्म से जुड़ा है। इस मामले में पुलिस ने आरोपी के खिलाफ पॉक्सो और आईपीसी के तहत मुकदमा दर्ज किया है। पुलिस ने आईपीसी की धारा 363 (अपहरण), धारा 366 (अपहरण, अपहरण या महिला को शादी के लिए मजबूर करना), धारा 376 (दुष्कर्म), धारा 342 (अवैध रूप से किसी व्यक्ति को प्रतिबंधित करना), धारा 506 (आपराधिक धमकी) और पॉक्सो की धारा 6 के तहत मामला दर्ज किया था।
पुलिस ने दी सफाई
इस मामले में अदालत में पुलिस ने अपनी सफाई पेश की है। दक्षिणी दिल्ली पुलिस उपायुक्त ने अदालत में जवाब दाखिल करते हुए कहा कि सुधार से पहले चार्जशीट पुलिस फाइल में था, वह अनजाने में शिकायतकर्ता को दिया गया था और यह गलती बिना किसी गलत मंशा के हुई। हालांकि, अदालत ने पुलिस उपायुक्त की सफाई को अपर्याप्त बताते हुए कहा कि संबंधित अधिकारियों की ओर से दुर्भावना बहुत बड़ी है और अदालत को जान-बूझकर गुमराह किया गया है।
पूर्व में एफआईआर दर्ज करने का दिया था आदेश
अदालत ने अपने पहले के आदेश में यह कहते हुए दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई थी कि यह उच्च किस्म का विश्वासघात था और इसके साथ ही पुलिस कमिश्नर को अदालत के साथ धोखाधड़ी का खेल खेलने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था।