राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में पिछले साल की तुलना में इस साल मानसिक बीमारियों के कारण आत्महत्या से मरने वालों की संख्या ढाई गुना से ज्यादा बढ़ी है। हालांकि विभिन्न स्वास्थ्य कारणों के कारण कुल मिलाकर आत्महत्याओं में काफी गिरावट आई है। आत्महत्याओं से मरने वालों की संख्या लगभग स्थिर रही- 2,526 और ज्यादातर आत्मदत्याओं में पारिवारिक कारणों का इसकी वजह बताया गया। पारिवारिक समस्याएं यानी परिवारों में झगड़े, रिश्तेदारों के साथ मतभेद आदि। डेटा में उन मामलों का कोई जिक्र नहीं है जिनमें आत्महत्या के प्रयास किए गए। आत्महत्या से औसतन रोज 7 लोग मारे जाते हैं जबिक 2019 में सड़क दुर्घटनाओं में औसतन रोज 4 लोगों की मौत हुई।
दिल्ली में हुई आत्महत्याओं से जुड़ा ये नया डेटा है। दिल्ली पुलिस इस तरह का कोई डेटा साझा नहीं करती है। पिछले साल दिल्ली मे आत्महत्या से मरने वाले 47 लोगों में मानसिक बीमारी को जिम्मेदार ठहराया गया इससे पिछले साल मरने वालों की संख्या कुल 18 थी और एक साल में बढ़कर 47 हो गई यानी 161 प्रतिशत की बढ़ोतरी. दोनों ही सालों में मरने वोलों के भीतर महिलाओं की संख्या 6 ही रही। पिछले साल हुई आत्मगत्या में 41 पुरुष थे और उससे पहले साल मरने वालों में 12।
मनोवैज्ञानिक आत्महत्या करने की इस प्रवृत्ति के पीछे किसी विशेष कारण की ओर इशारा नहीं करते, यहां तक कि उन्होंने यह भी कहा कि जरूरी नहीं एनसीआरबी के डेटा सटीक हो। फोर्टिस नेशनल मेंटल हेल्थ प्रोग्राम के निदेशक मनोचिकित्सक समीर पारिख ने कहा, “अगर कोई व्यक्ति अपनी मानसिक बीमारी के लिए चिकित्सा उपचार की तलाश नहीं करता है, तो इससे पीड़ित होने के बावजूद उसकी गिनती नहीं की जाती है।”
बेरोजगारी और शिक्षा
बेरोजगारी एक ऐसा कारण था जिसके कारण 2018 की तुलना में 2019 में अधिक आत्महत्याएं हुईं। बेरोजगारी से आत्महत्या करने से कम से कम 118 लोगों की मौत हो गई, 2018 में ऐसी 98 मौतें हुई थी यानी इसमें भी 20 प्रतिशत का उछाल आया है। इसके अलावा, बेरोजगार लोगों की आत्महत्या की संख्या 2018 में 611 से बढ़कर 2019 में 677 हो गई।
डेटा बताता है कि मरने वाले लोग बुनियाद शिक्षा प्राप्त करके बेहद कम पैसा कमा रहे थे। 80% से अधिक आत्महत्याएं केवल 12 वीं कक्षा तक पढ़ने वाले लोगों द्वारा की गई थीं, और 61% से अधिक लोग ऐसे थे, जिन्होंने सालाना 1 लाख रुपये से कम कमाया था। सभी आत्महत्याओं में से लगभग 10% दैनिक मजदूर थे।मनोवैज्ञानिक रजत मित्रा ने खराब वित्तीय / शैक्षिक पृष्ठभूमि और उदासी व निराशा को आत्महत्याओं का कारण बताया है। मित्रा कहते हैं, “कम पैसा कमाने वाले लोगों को निराशा की भावना और विकल्पों की कमी महसूस होती है इससे उनके आत्मसम्मान को चोट पहुंचती है और उनके पास आत्महत्या के विकल्प के पास कुछ नहीं रहता।”
उन्होंने कहा कि इस समस्या का एक संभावित समाधान ऐसे लोगों के बीच उद्यमशीलता की संस्कृति को विकसित करना था। मित्रा ने कहा, “उन्हें पैसे कमाने के लिए कौशल हासिल करने में सक्षम होने और सरकार को अपना उद्यम शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए आगे बढ़ने की जरूरत है।
रिश्ते
रिश्ते में दिक्कते जैसे- शादी, परिवार, अफेयर, शादी के बाद अफेयर इन सब में दिक्कत होने के वजह से 1007 लोगों ने आत्महत्या की। कुल 40 प्रतिशत लोगों ने इन कारणों की वजह से ही अफनी जिंदगी खत्म कर ली। हालाँकि शादी से संबंधित आत्महत्याएं 233 से 123 हो गई। लेकिन सूची में और भी लोग थे जिन्होंने हाल ही में अपने साथी खो दिए – या तो मौत या अलग होने के कारण। 2019 में आत्महत्या से तीस विधवाओं और विधुरों की मृत्यु हुई, उससे पहले वर्ष में 10; और जो लोग हाल ही में अपने पार्टनर से अलग हुए थे, उनकी संख्या इसी अवधि में 31 से 93 हो गई। हर चार में से तीन लोगों ने फांसी लगाकर आत्महत्या की. इशके बाद 6.76% मामलों में लोगों ने जहर खा लिया।
इस साल स्थिति ज्यादा खराब
इस साल होने वाली आत्महत्याओं का कोई डेटा तो उपलब्ध नहीं है लेकिन ऐसे कई उदाहरण देखे गए जब लोगों ने कोरोना पॉजीटिव होने या महामारी में पैसे की कमी होने के कारण अपनी जान देदी.
मित्रा ने आशंका जताई कि इस साल आत्महत्या के आंकड़े पिछले वर्षों की तुलना में काफी अधिक हो सकते हैं। मित्रा ने कहा, “लोगों ने अपनी नौकरी खो दी है और उनके व्यवसाय भी ठप हो गए हैं, लेकिन अभी वे अपनी बचत पर निर्भर हैं। एक बार जब उन्हें नुकसान का अहसास होने लगता है और उनकी बचत खत्म होने लगती है, तो स्थिति खराब हो सकती है”
उन्होंने कहा कि ऐसे प्रभावित लोगों को नुकसान को स्वीकार करने की आवश्यकता है, उद्यमिता के अवसरों की तलाश करें और महसूस करें कि वे हमेशा वापस बेहतर स्थिति में आ सकते हैं.